दोस्तों हर इंसान के लिए कर्म और धर्म दोनों ही जरुरी बताये गये हैं… क्यों कर्मों से व्यक्ति के अस्तित्व का पता चलता है.. और धर्म से ये पता चलता है कि वो इंसान अपने ईश्वर के प्रति कितना समर्पित है… ऐसे में कुछ लोगो को ये समझ नहीं आता कि हमारे जीवन को धर्म बदलता है या कर्म… आपके मन में भी ये सवाल कई बार आया होगा… पर क्या आपको इसका जवाब मिला…
दरअसल, धर्म आपकी जिंदगी में आपको ये बतातें है कि आपका कौन सा कर्म सही है और कौन सा गलत… इतना ही नहीं धर्म की मदद से आप ये भी पता कर सकते हैं कि आपके कौन से कर्म का कैसा परिणाम होगा… सरल भाषा में कहें तो धर्म को जानने के बाद ही व्यक्ति अपने सही कर्म का पता लगा सकता है.. यानी की कर्म और धर्म का सही कॉम्बिनेशन ही आपके जीवन में बदलाव लाता है।
धर्म वो है जिस पर एक समुदाय के लोग विश्वास करते हैं और उसे मानते हैं… वहीं आप जो भी अच्छे- बुरे काम करते हैं… वो कर्म की श्रेणी में आते हैं।
कर्म और धर्म को और बेहतर समझने के लिए आपको सबसे पहले इनके बीच के अंतर को जानना है…
कर्म दो तरह के बतायें गयें है.. एक वो जिसमें मनुष्य अपना स्वार्थ यानि की अपना फायदा देखता है और तब उसे करता है… दूसरा कर्म वो है जो निस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई के लिए किया जाता है… और इन दोनों के दो फल होते हैं एक पाप और दूसरा पुण्य… पाप से मन दुखी होता है और पुण्य से सुख मिलता है… इसलिए धर्म हमेशा आपको पुण्य कर्म की राह पर चलने को कहता है।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं निष्काम कर्म की अपेक्षा सकाम कर्म बहुत छोटे होते हैं…. इसलिए मनुष्य को फल कि चिंता किये बिना सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए….. क्योंकि कर्म किये बिना संसार में कोई नहीं रह सकता और हमारी प्रकृति किसी न किसी बहाने से यहां रहने वाले हर प्राणी से काम करवा ही लेती है।
आपको बता दें धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘धृ’ से हुयी है… जिसका मतलब होता है धारण करना…. धर्म हम मुनष्य के लिए बनाया गया है, नाकि ईश्वर के लिए… और धर्म कभी अकेला नहीं रहता… इसे जो भी इंसान धारण करता है उसे संयम-त्याग, विवेक शीतलता, और प्रेम भी प्राप्त होता है… धर्म की मदद से आप इस दुनिया रूपी सागर को पार कर सकते है।
मान्यता है कि धर्म इतना शक्तिशाली होता है कि वो समाज में कलह नही पैदा होने देता… क्यों कि वो समाज में एकता बनाकर रखता है… यहां धर्म का मतलब हिंदू- मुस्लिम सिक्ख ईसाई से नहीं… बल्कि यहां धर्म का मतलब उस शक्ति से है जो आपको अच्छे कर्म करने के लिए हमेशा प्रेरणा देती है।
इसलिए हमें धर्म और कर्म दोनों को अच्छे से समझकर फिर कोई निर्णय लेना चाहिए… क्यों कि गलत कर्म व्यक्ति के भविष्य को बर्बाद कर देते है… इसी लिए हमारा सबसे पहले और जरुरी कर्म यहीं है कि हम अपने अंदर की कमियों को ढ़ढ़ें और उसे दूर करें।
यहां कर्म का आपके भाग्य से कोई लेना- देना नहीं होता है… क्यों कि हम जैसे कर्म करते हैं वैसा फल हमें मिलता है… आसान भाषा में कहें तो ‘जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे’… और वैसे भी ये तो आप सभी जानते हैं कि आपके कर्म पलट कर के आपके पास वापस जरुर आतें हैं।
वही भगवान श्रीकृष्ण भी यही कहते हैं… इंसान का अधिकार सिर्फ उसके कर्मों पर है न की उसके फल पर… इसिलए उसे बिना कर्मों के फल के बारे में सोचे अपने काम करने चाहिए… क्यों कि मनुष्य के सारे कर्मों के साक्षी भगवना खुद होते हैं.. इसलिए कहा जाता है कि आप इंसान से छुपकर काम तो कर के सकते हैं.. लेकिन भगवान से नहीं.. क्यों को वो हर जगह मौजूद हैं।
कहते हैं संसार में कुल 84 लाख योनियों है… जिसमें से मनुष्य का जन्म हमें केवल एक बार मिलता है… और इसी योनी में किये गये कर्मों के आधार पर हमारा अगली योनी तय की जाती है… इसलिए कहा गया है मनुष्य योनी में जितना हो सके.. उतना अच्छें कर्म करें… क्यों कि हमारे पास सिर्फ इसी योनी में ये क्षमता होती है कि हम ये समझ सकें कि कौन सा कर्म अच्छा है और कौन सा खराब… इसलिए ऐसा कोई भी कर्म न करें जिसकी आपको भविष्य में भारी कीमत चुकानी पड़ें।
सरल भाषा में कहें तो धर्म व्यक्ति को गलत मार्ग पर चलने से रोकता है… और इंसान के अच्छे कर्म उसे मोक्ष प्राप्त करने में उसकी मदद करते हैं… इलिए धर्म और कर्म रिश्ता वैसा ही जैसा शरीर और आत्मा का।
तो दोस्तों धर्म को अच्छे समझे और फिर अपना कर्म करें।