हमारे इतिहास में कई ऐसे ऋषि भी थे जिन्होंने अपनी करतूतों के चलते खुद को बेलगाम ऋषियों की लिस्ट में शामिल कर लिया लेकिन सोचने वाली बात है कि आखिर वो कौन से ऋषि हैं…
ऋषि पराशर
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ऋषि पराशर यमुना पार करने के लिए सत्यवती नाम की कन्या की नाव में सवार हुए। उसके रूप को देखकर ऋषि मोहित हो गए। ऋषि पराशर ने सत्यवती के सामने प्रेम बनाने का प्रस्ताव रख दिया।
सत्यवती ऋषि पराशर के साथ ऐसा करने के लिए तैयार हो गई। मगर उसने ऋषि के सामने कुछ शर्तें रख दी। सत्यवती की पहली शर्त थी कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई न देखे।
ऋषि ने ये शर्त मान ली और अपनी दिव्यशक्ति से घने कोहरे का कृत्रिम आवरण बना दिया। सत्यवती ने फिर कहा कि उसकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। ऋषि ने आश्वासन दिया कि उसकी कौमार्यता वापस आ जाएगी।
इसके साथ ही सत्यवती ने कहा कि अगर ऋषि उन्हें मछली जैसी बदबू से मुक्त करेंगे, तो ही वो उनकी बात मान जाएगी…. ऋषि ने तुरंत उसकी बदबू दूर कर दी और उसके शरीर से फूलों की खूश्बू आने लगी।
इस तरह ऋषि पराशर और सत्यवती के बीच प्रेम बना… सत्यवती ने फिर एक पुत्र को जन्म दिया। वही आगे जाकर महर्षि वेदव्यास के नाम से जानें गए। वेदव्यास ने ही महाभारत की रचना की।
महर्षि वेदव्यास
वहीं दोस्तों, बीतते समय के साथ सत्यवती की शादी राजा शांतनुसे हो गई…. जिसके बाद उन्होंने दो पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य ने जन्म दिया। लेकिन एक दिन चित्रांगद की युद्ध में मौत हो गई जिसके चलते विचित्रवीर्य को राजा बना दिया गया। विचित्रवीर्य की 2 पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका थीं।
सत्यवती को अपने कुल के चिराग का बेसब्री से इंतजार था लेकिन नियती को कुछ और ही मंजूर था…. विचित्रवीर्य को दोनों ही पत्नियों से कोई संतान नहीं हुईं और एक दिन ऐसा आया जब वह भी यह दुनिया छोड़कर चला गया।
इन सबके बाद भी सत्यवती के मन से वंश की इच्छा नहीं खत्म ही…वंश की रक्षा के लिए सत्यवती ने अपने पहले बेटे और अम्बिका और अम्बालिका के जेठ ऋषि वेदव्यास को याद किया। सत्यवती ने वेदव्यास से अम्बिका और अम्बालिका से पुत्र प्राप्ति की इच्छा जाहिर की।
सबसे पहले सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी अम्बालिका को वेदव्यास के पास भेजा…. जैसे ही अम्बिका वेदव्यास के सामने पहुंची वो उनके तेज से इतना डर गई कि उसने अपनी आंखें बंद कर लिए जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देखकर भय से पीली पड़ गई।
वेदव्यास लौटकर माता सत्यवती के पास आए और उन्होंने कहा कि माता अम्बिका को बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा लेकिन नेत्र बंद करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा।
ऋषि कुंडु
एक बार ऋषि कुंडू की तपस्या भंग करने के लिए देवराज इंद्र ने प्रम्लोचा नामक की अप्सरा को पृथ्वीलोक पर भेजा था…. अप्सरा ज़ब ऋषि कण्डु के सामने प्रकट हुई, तो ऋषि कण्डु उसके रूप और सौंदर्य को देखकर उस पर मोहित हो गये और उसे अपने साथ लेकर मंदरांचल पर्वत की गुफाओ में चले गये।
वहीं गुफा के अंदर सौ से अधिक सालों तक अप्सरा प्रम्लोचा के साथ प्रेम की बेला में डूबे रहे… सौ साल जब बीत गए तब एक दिन अप्सरा ने ऋषि कण्डु से कहा कि हे ऋषिवर अब मैं स्वर्गलोक वापस जाना चाहती हूँ। इसलिए आप मुझे प्रसन्नता पूर्वक विदा कीजिये। अप्सरा के मुख से जाने की बात सुनकर ऋषि उदास हो गए और उन्होंने कहा हे देवी अभी थोड़े दिन और रुक जाती तो अच्छा होता।
ऋषि को उदास देखकर प्रम्लोचा पृथ्वीलोक पर और कुछ दिन रुकने को मान गयी और फिर ऋषि कण्डु ने अगले सौ वर्षों तक उसी गुफा में अप्सरा के साथ भोग विलास किया। फिर सौ वर्षों बाद एक दिन प्रम्लोचा ने ऋषि कण्डु से कहा हे मुनि मुझे पृथ्वीलोक पर आये बहुत समय हो गया, अब तो आप मुझे स्वर्गलोक जाने कि आज्ञा प्रदान करें।
ऋषि कण्डु उसकी बात सुनकर फिर व्यथित हो गए और बोले हे देवी अभी कुछ दिन और रुको। ऐसे ही करते हुए कई सौ साल गुजर गए और जब भी प्रम्लोचा स्वर्गलोक जाने की बात ऋषि से कहती तो वो किसी भी तरह से उसे मना लेते और अप्सरा ऋषि के श्राप के डर से कुछ कह भी नहीं पाती है।
तो दोस्तों, देखा आपने हिन्दू महाकाव्यों के अनुसार कौन थे वो ठरकी ऋषि।
दोस्तों, सिर्फ ऋषि ही नहीं बल्कि ऐसे ही कुछ देव भी हुआ करते थे… अब सोचने वाली बात है आखिर कौन थे वो…
वैसे तो चांद को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं… एक बेहद प्रचलित पौराणिक मान्यता की मानें तो चंद्र देव जिसका रिश्ता देवों के गुरु बृहस्पति की पत्नी से जुड़ा है… कहते हैं, बृहस्पति से शिक्षा लेने के बाद चंद्रमा ने एक ऐसा अपराध कर दिया जिससे देवगुरु का क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि चंद्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण कर लिया था… चंद्रमा ने तारा से विवाह कर लिया जिससे बुध ग्रह का जन्म हुआ।
इस विवाद के बाद बृहस्पति और चंद्रमा में भीषण युद्ध हुआ…उस युद्ध में बृहस्पति ने चंद्रमा को पराजित कर दिया…. कहते हैं उसके बाद चंद्रमा को बृहस्पति की पत्नी तारा को वापस करना पड़ा।
वहीं एक और कथा की मानें तो देवगुरु बृहस्पति से चंद्रमा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी उनकी पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी…. चंद्रमा भी तारा पर मुग्ध हो गए।
दोनों में प्रेम हो गया और तारा चंद्रमा के साथ ही रहने चली गई… बृहस्पति इससे बहुत नाराज हुए…. उन्होंने चंद्रमा से अपनी पत्नी लौटाने को कहा लेकिन न तो चंद्रमा तारा को लौटाने को राजी थे और न ही तारा वापस जाना चाहती थीं…इसी बात पर बृहस्पति और उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध शुरू हो गया… दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य और बृहस्पति में पहले से ही बैर था…इसलिए शुक्र चंद्रमा के साथ हो गए…बलि चंद्रमा के ससुर थे….वह भी चंद्रमा की मदद के लिए आ गए।
असुरों के चंद्रमा के साथ हो जाने से देवताओं ने युद्ध में बृहस्पति का साथ दिया… गुरु शिष्य के बीच शुरू हुए झगड़े ने महासंग्राम का रूप ले लिया…. बृहस्पति के पिता अंगीरस शिवजी के विद्यागुरु थे…. वह अपने गुरुपुत्र के पक्ष में युद्ध के लिए गणों के साथ आ गए….वहीं ब्रह्मा को डर लगा कि इस युद्ध के वजह से कहीं सृष्टि का ही अंत न हो जाए…. वह बीच-बचाव कर युद्ध रुकवाने की कोशिश करने लगे…. ब्रह्मा तारा के पास गए और समझाया कि उसके प्रेम संबंध की वजह से संसार खतरे में है… उसे बृहस्पति के पास चले जाना चाहिए….जिसके बाद तारा चंद्रमा को छोड़ वापस बृहस्पति के पास चली गई।