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एक अप्सरा की पुत्री कैसे बनी त्रिजटा राक्षसी

by Divine Tales

दोस्तों, जब माता सीता लंका में थी तो अशोक वाटिका में उनका ध्यान त्रिजटा ने रखा था… जो वहां की खास राक्षसियों में से एक थी… जिसे देवी सीता, जो कि साक्षात लक्ष्मी का अवतार थी, उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था…

पर यहां पर त्रिजटा को लेकर बहुत सारे सवाल उठते है.. जैसे राक्षसी होते हुये भी उसने देवी सीता को कोई नुकसान क्यों नहीं पहुंचाया… किसकी पुत्री थी त्रिजटा.. रावण उसपर इतना विश्वास क्यों करता था..

आज हम आपको इन सारे सवालों के जवाब देंगे… लेकिन इसके लिए आपको त्रिजटा के पिछले जन्म में जाना होगा.. जब वो सुलेखा नाम की एक बेहद खूबसूरत अप्सरा हुआ करती थी और इंद्र की सभा की शोभा मानी जाती थी..  सुलेखा को चित्रसेन नाम के गंधर्व से प्रेंम हो गया था… दोनों देवराज इंद्र के दरबार में नृत्य कर के सभी का मन बहलाया करते थे… एक दिन नृत्य करते- करते सुलेखा को ये आभास हुआ कि वो बहुत जल्द चित्रसेन से बिछड़ने वाली है… और वो रोने लगी… तभी सभा में नारद मुनि का आना हुआ.. उन्होंने कहा सुलेखा तुम्हें रोने की जरुरत नहीं है… भविष्य में जो कुछ भी होगा.. उससे तुम्हारा भला ही होगा.. सुलेखा ने उनसे पूछा आखिर ऐसा क्या होने वाला है मुनीवर, मेरा मन बहुत घबरा रहा है…  नारद मुनि ने कहा भविष्य की बातें वर्तमान में नहीं की जाती है… इसलिए तुम चिंता न करो.. इस बात ने सुलेखा के मन में चिंता और बढ़ा दी।

ये सब देखते हुए एक दिन चित्रसेन सुलेखा के साथ पृथ्वीलोक घूमने गया.. वहां का वातावरण देखकर सुलेखा बहुत खुश हुयी… जैसे ही उसने झरने को देखा उसके मन में वहां स्नान करने की इच्छा पैदा हुयी.. उसने चित्रसेना से कहा और दोनों उस झरने में जाकर नहाने लगे.. एक- दूसरे पर पानी डालकर दोनों नदी में हंसी- ठिठोली कर रहे थे… वहीं पास में ही एक चट्टान पर बैठकर ऋषि दुर्वासा तपस्या कर रहे थे… बार- बार पानी के छिटे उनपर भी पड़ रहें थे..  पर सुलेखा और चित्रसेन इस बात से अंजान अपना खेल में खोये हुये थे… जब ऋषि दुर्वासा से सहन नहीं हुआ तो उन्होंने आंख खोली और सुलेखा से कहा कि तुम यहां से चली जाओ… तुम्हारे खेल की वजह से पानी के छिटे मुझपर भी पड़ रहे हैं… जो मेरी तपस्या में खलल पैदा कर रहे हैं… लेकिन ऋषि की ये बात मानना तो दूर सुलेखा उन्हें उल्टे जवाब देने लगी….  ये देकर दर्वासा ऋषि गुस्से से आग- बूबला हो गये… उन्हेंने सुलेखा को ये श्राप दिया कि तुम बहुत जल्द ये सुंदर शरीर त्याग दोगी और इसके बाद तुम्हारा अगला जन्म राक्षस कुल में होगा।

दुर्वासा ऋषि के इतना कहते ही चित्रसेन ने उनके पैर पकड़ लिये.. और सुलेखा की तरफ से मांफी मांगने लगा.. सुलेखा को भी अपनी गलती का एहसास हुआ.. वो ऋषि के पैरों में गिरकर उनसे मांफी की भीख मांगने लगी… तब ऋषि दुर्वासा ने कहा मैं अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकता.. लेकिन ये वरदान देता हूं कि तुम्हारें उस जन्म में तुम्हें साक्षात भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी के दर्शन होंगे.. देवी सीता जो साक्षात लक्ष्मी का अवतार होंगी.. उनकी सेवा कर के तुम्हें मुक्ति मिलेगी।

और ठीक ऐसा ही हुआ… माली नाम का एक राक्षस हुआ करता था.. जिसकी पुत्री का नाम कंचुकेशी था… कंचुकेशी ने हरिकीर्तन कर के ऋषि विश्रवा को प्रसन्न कर लिया था.. इसके बाद दोनों एक- दूसरे के पासकर प्रेंम करने लगे… और फिर कुछ समय बाद ही कंचुकेशी गर्भवती हो गयी और उसे एक कन्या की प्राप्ति हुयी, जिसका नाम त्रिजटा पड़ा।

वैसे आपको बता दें ऋषि विश्रवा ही रावण के पिता थे.. जिन्होंने कैकसी से विवाह किया था.. जिससे रावण का जन्म हुआ… कई जगहों पर त्रिजटा को रावण की सतौली बहन भी बताया जाता है… ऋषि दुर्वासा के श्राप और वरदान के कारण ही उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ और उसे सीता मां की सेवा करने का मौका मिला।

इतना ही नहीं रावण वध के बाद जब सीता वापस श्रीराम के पास जा रही थी.. तो त्रिजटा ने उन्हें बहुत अच्छे से सजाकर वापस भेजा था.. श्रीराम से मिलने का बाद जब सीता मां ने प्रभु श्रीराम को त्रिजटा की सारी बात बतायी तो वो बहुत प्रसन्न हुये.. उन्होंने त्रिजटा को ये वरदान दिया हे त्रिजटे, जो हवन- श्राद्घ आदि क्रोध में, गंदे घर में किये जायेंगे वो सब तम को प्राप्त होंगे.. फिर वो चाहे कितने ही विधि विधान से क्यों न किये हों.. जिस श्राद्घ में बिना तिल के तर्पण किया जायेगा.. जो बिना दक्षिणा के संपन्न होगा.. वो सब भी तुम्ही को प्राप्त होगा.. इसे अलावा भी प्रभु श्रीराम ने त्रिजटा को कई सारे वरदान देकर उसे धन्य किया।

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