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कलयुग में भी देखने को मिल रहे राम सेतु से जुड़े राज

by Divine Tales

दोस्तों, रामायण काल में बनें रामसेतु के बारे में तो आपने सीरियल और फिल्मों में कई बार देखा और सुना होगा इसके साथ ही रामचरित्रमानस में भी इसका जिक्र मिलता है… लेकिन क्या आप जानते हैं त्रेतायुग के बाद आज कलयुग में भी इस सेतु से जुड़े कई राज देखने को मिल रहे हैं….

दरअसल, प्रभु राम और माता सीता के प्रेम की निशानी कहे जाने वाले रामसेतू को लेकर कहा जाता है कि यह पुल इंसानों ने अपने हाथों से बनाया था…. इस तथ्य के लेकर कई सालों से बहस चलती चली आ रही है। हालांकि आज भी राम सेतु से जुड़ी बाते एक रहस्‍य बना हुआ है…..

आपको बता दें, भारत के दक्षिण में धनुषकोटि व श्रीलंका के उत्तर पश्चिम के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग को रामसेतु कहा जाने लगा। राम सेतु की फोटो अमेरिका की अंतरिक्ष कंपनी नासा ने 14 दिसम्बर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था।

आपको जानकर हैरानी होगी कि राम सेतु को नाला सेतु के नाम से भी जाना जाता है… दरअसल, इसके पीछे भी एक कारण है… ऐसा माना जाता है कि यह पुल बनाने का विचार वानर सेना के एक सदस्‍य नल ने ही बाकि सदस्‍यों को दिया था।

सिर्फ यही नहीं….. औऱ तो और ये भी कहा जाता है कि जब वहीं प्रोजेक्ट रामेश्वरम नाम के एक अध्‍ययन के जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कहा है कि 7000 से 18000 साल पूर्व रामेश्वरम के आइलैंड व श्रीलंका के आइलैंड की खोज हुई थी। जिसका अर्थ है कि पुल 500-600 साल पुराना है। इस पुल की लंबाई कुल 48 किमी है।

अच्छा ये तो आप जानते ही हैं की रामसेतु तैरने वाले पत्थरों से बनें थे लेकिन आपको बता दें कि ऐसे तैरते हुए पत्‍थर आज भी रामेश्वरम में मौजूद हैं।

वहीं दोस्तों, वैज्ञानिकों का मानना है कि नल और नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार से रखने से पानी में डूबेगा नहीं और दूसरे पत्थरों का सहारा भी बनेगा। रामसेतु पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था, उन्हें ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहा जाता है।

यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से बनते हैं, जिसमें कई सारे छिद्र होते हैं। इसकी वजह से यह पत्थर एक स्पांजी यानी खंखरा आकार ले लेता है इनका वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है और छिद्रों में हवा भरी रहती है। यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है क्योंकि हवा इसे ऊपर ही रखती है।

हैरानी की बात यह है कि आज भी ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलता कि पुल मानव निर्मित है। 15 वीं शताब्दी तक, पुल पर चलकर जा सकते थे। शोध बताते हैं कि, 1480 तक पुल पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था। वैसे तो, आपदाओं के चलते समुद्र ने पुल को पूरी तरह से डुबो दिया था। इस तरह अंदाजा लगाया जा सकता है कि रामसेतु प्राकृतिक चूना पत्थर के शोल से बना एक सेतु है।

सबसे पहले श्री लंका के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इसे आदम पुल कहना शुरू किया था। फिर ईसाई या पश्चिमी लोग इसे एडम ब्रिज कहने लगे। राम सेतु पर कई शोध हुए हैं कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था।

वहीं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह सेतु आज तक क्यों नहीं टूटा? वैसा का वैसा कैसे बना हुआ है?

बता दें, जिस राम सेतु का निर्माण वानरों और भालुओं ने श्रीराम के कहने पर किया था बाद में उसी सेतु को श्रीराम ने खुद ही तोड़ दिया था। दरअसल, इससे जुड़ी कथा का वर्णन पद्म पुराण के सृष्टि खंड में मिलता है।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण के वध के बाद श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौट गए। अयोध्या का राजा बनने के बाद एक दिन भगवान राम को विभीषण का विचार आता है और वो उनसे मिलने के लिए लंका जाने पर विचार करते। लक्ष्मण को अयोध्या की कमान सौंपकर श्रीराम और भरत लंका जाने के लिए तैयार हो गए।

लंका जाते वक्त श्रीराम किष्किंधा नगरी में थोड़ी देर ठहरकर सुग्रीव और अन्य वानरों से मिलें। जब सुग्रीव को पता चला कि श्रीराम विभीषण से मिलने लंका जा रहे है तो वो भी उनके साथ निकल पड़े।

दोस्तों, जब विभीषण को पता चला कि श्रीराम, भरत व सुग्रीव लंका आ रहे हैं तो वे पूरे नगर को सजाने का आदेश देते हैं। श्रीराम लंका पहुंचे तो वे विभीषण को धर्म-अधर्म का ज्ञान देते हैं और कहते हैं कि तुम हमेशा धर्म पूर्वक इस नगर पर राज्य करना। श्रीराम पूरे तीन दिन तक लंका में रुके थे।

जैसे ही श्रीराम अयोध्या जाने के लिए पुष्पक विमान पर बैठते हैं विभीषण उनसे कहता है कि भगवान आपने जैसा मुझसे कहा है, ठीक उसी तरह मैं धर्म पूर्वक राज्य करूंगा, लेकिन इस पुल के रास्ते जब मानव यहां आकर मुझे परेशान करेंगे, उस समय मुझे क्या करना चाहिए?

बस फिर क्या था विभीषण के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अपने बाणों से रामसेतु पुल के दो टुकड़े कर दिए फिर तीन भाग करके बीच का हिस्सा भी अपने बाणों से तोड़ दिया ताकि विभीषण को भविष्य में किसी तरह की परेशानी न हो और मानव उन्हें किसी तरह से परेशान न कर पाए। दूसरों की इतनी फिक्र करने के कारण ही तो उन्हें मर्यादा पुरुषोतम कहा जाता है।

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