दोस्तों ये तो आप सब जानते है कि रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी… उनके द्वारा ही हम प्रभु श्रीराम और उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं को जान पायें… लेकिन क्या आपने कभी सोचा है वाल्मीकि जी को पूरी रामायण का ज्ञान कैसे हुआ… क्यों कि श्रीराम से उनकी मुलाकात तो बहुत समय बाद हुयी थी.. फिर उन्हें राम जी के जीवन की एक- एक बात कैसे पता चली…
वनवास के बाद जब प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या आये तो बहुत धूमधाम के साथ उनका स्वागत किया गया… इसके बाद उनके राज्यअभिषेक की भव्य तैयारी की गयी… जिसमें तीनों लोकों से सभी देवी-देवता, मनुष्य, गंधर्व आदि सब शामिल हुये… इस खूबसूरत मौके का साक्षी हर कोई होना चाहबता था… तब भगवान ब्रह्मा ने नारद जी को दर्शन देकर उनसे कहा.. मुनीवर अब समय आ चुका है की श्रीराम के जीवन के बारे में सभी को पता चलें… जिससे अतंत काल तक लोगो को ये प्रेरणा मिलती रहे कि मानव जीवन को कैसे जीया जाता है।
ब्रह्मा जी की बात सुनकर नारद मुनि ने कहा भगवन कौन वो सौभाग्यशाली होगा जो इस सुदर चरित्र के बारे में खुद लिखेगा… तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि इस रचना के लिए धरती पर एक महापुरुष जन्म ले चुकें है.. और ये कोई और नहीं बल्कि वांगमय के अवतार और सरस्वती के पुत्र महर्षि वाल्मीकि हैं।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने नारद जी को ये आदेश दिया कि आप इसी समय महर्षि वाल्मीकि के आश्रम जाकर उन्हें ये बात बतायें कि अब रामायण के लिखने का समय आ चुका है… उन्होंने कहा मुनीवर आप वाल्मीकि जी को वो दिव्य शक्तियां दें, जिससे वो दुनिया के पहले महाकाव्य की रचना की शुरुआत कर सकें।
ब्रह्मा जी के आज्ञा अनुसार नारद ऋषि वाल्मिकी जी के आश्रम और उन्हें भगवान ब्रह्मा के आदेश के बारे में बताया.. नारद जी को सामने देखकर महर्षि वाल्मीकि बहुत खुश हुये.. उन्होंने उनके पैर छुये और नारद मुनी का आशीर्वाद लिया… नारद जी ने कहा ऋषिवर, ब्रह्मा जी ने श्रीराम कथा लिखने के लिए आपको चुना है… और जैसे अनंत काल तक रामायण का गुणगान होता रहेगा.. वैसे ही अनंतकाल तक सारे संसार में आपकी प्रशंसा भी होती रहेगी।
इतना ही नहीं… भविष्य में आपको इस कहानी का एक मुख्य पात्र भी बनना होगा… जिसमें आपकी भूमिका बहुत खास होगी.. इसके बाद नारद मुनि ने भजन के जरिये वाल्मिकी जी को पूरी राम कथा सुना दी.. और फिर उसे काव्य के रुप में लिखने को कहा… पूरी रामायण सुनाने के बाद देवर्षि नारद वहां से चल गये।
श्रीराम की कथा सुनने के बाद महर्षि वाल्मीकि की खुशी का ठिकाना नहीं रहा… वो य़े सोच- सोचकर खुश हो रहे थे… किं इतने सुंदर महाकाव्य की रचना के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हें योग्य समझा।
इसके बाद वाल्मिकी जी को भगवान ब्रह्मा ने खुद दर्शन दिये.. और बोले इस महाकाव्य को लिखने में देवी सरस्वती आपकी मदद करेंगी… उनकी कृपा से आपको छंद बनाने का ज्ञान प्राप्त हुआ है… इसलिए अब आप श्रीराम के जीवन को छंद रुप में लिखें और इस काव्य को रामायण का नाम देकर लिखना शुरु करें।
भगवान ब्रह्मा ने महर्षि वाल्मीकि को ये वरदान दिया कि अब से आप प्रभु राम के जीवन के साथ- साथ माता सीता और लक्ष्मण जी के जीवन से जुड़े भी सारे रहस्य जान सकेंगें… इन सभी के जीवन में जो भी घटनाएं घटित हुयी… वो आपको पता चल जायेंगी.. इसके साथ की आप इनके जीवन में भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में अपनी दिव्य दृष्टि से देख पायेंगे।
ब्रह्मा जी ने कहा ऋषिवर याद रहें अब से आप इस काव्य में जो भी लिखेंगे भविष्य में उसे ही सत्य माना जायेगा… क्यों कि इस महाकाव्य में आप अपने श्लोकों के माध्यम से प्रभु श्रीराम का सिर्फ भूत ही नहीं बल्कि भविष्य भी लिखेंगे।
इन सब के बीच वाल्मिकी जी के मन में एक सवाल पैदा हुआ.. उन्होंने भगवान ब्रह्मा से पूछा.. भगवन आपने इतने बड़े काम के लिए मुझे ही क्यों चुना…
इस पर परम पिता ब्रह्मा जी कहा ऋषिवर आपकी तपस्या से खुश होकर सभी देवताओं ने आपको ये आशीर्वाद दिया है कि भविष्य में आपको देवी सीता की सेवा करने का मौका मिलेगा… इसलिए ये आपकी तपस्या का ही फल है… इतना ही नीहं उन्होंने ये भी कहा.. कि ऐसा करने से आपको सारे संसार में यश मिलेगा और आपका नाम बड़े ही सम्मान से याद किया जायेगा… और ये सब कुछ पहले ही तय किया जा चुका है… महर्षि वाल्मीकि के सवाल का जवाब देकर ब्रह्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और फिर अंतरध्यान हो गये।
इसके बाद वाल्मीकि जी ने रामायण को लिखने का कार्य शुरू किया… जो भारत के पहले महाकाव्य के रुप में प्रचलित हुआ.. जिसे आज भी लोग जब पढ़ते हैं तो उसकी तारीफ करते नहीं थकते।