मां शीतला, और शीतला मंदिर की खासियत

दोस्तों वैसे तो भारत के कई राज्यों में मां शीतला के मंदिर है, लेकिन जो मंदिर गुरुग्राम में है, उसकी खास मान्यता है, ऐसा इसलिए भी है क्यों कि इस मंदिर का रिश्ता सीधे महाभारत काल से है। क्या आप जानते है, मां शीतला देवी कौन थी और क्यों ये मंदिर इतना खास है?
गुरुग्राम, हरियाणा स्थित शीतला माता का ये मंदिर बहुत ही पुराना और सिद्ध मंदिर है। स्कंद पुराण के अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, इसलिए इनके दर्शन करने से शारीरिक रोगों से छुटकारा मिल जाता है, खास तौर से चर्म रोग से जुड़ी बीमारियां तो दूर भाग जाती है।
आपको बता दें माता अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते धारण किये रहती हैं।
इतना ही नहीं मंदिर के आंगन में एक बेहद चमत्कारी पीपल का विशाल वृक्ष है। मान्यता है कि अगर व्यक्ति कलावे के साथ इस वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करता है, तो उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। फिर वो चाहे आपके विवाह से जुड़ी प्रार्थना हो या संतान से या फिर नौकरी से।
खास बात तो ये है कि अगर ऐसा शीतला अष्टमी के दिन किया जाये तो बहुत ही ज्यादा फलदायी होता है।
इस मंदिर में भैरव बाबा की भी मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है मां शीतला के दर्शन तभी पूरे माने जाते है, जब आपने भैरव बाबा के दर्शन किये हो। इसलिए अगर आप इस मंदिर आये तो माता के साथ- साथ भैरव बाबा का आशीर्वाद लेना बिल्कुल न भूलें।
अब आपको बतातें है कि इस मंदिर का क्या रिश्चता है महाभारत से..
प्रचलित कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध में जब द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने गुरु द्रोणाचार्य का वध कर दिया था, तब उनकी पत्नी कृपि, अपने पति यानि की गुरु द्रोणाचार्य के साथ सती होना चाहती थी, इसलिए वो द्रोणाचार्य की चिता में बैठने के लिए आगे बढ़नी लगी।
उस समय कई लोगों ने उनको समझाया और सती होने से रोकने का बहुत प्रयास किया। लेकिन माता कृपि ने सती होने की ठान ली थी, इसलिए उन्होंने किसी की बात नहीं मानी और जाकर अपने पति की चिता पर बैठ गईं।
लेकिन चिता में बैठते वक्त उन्होंने सभी लोगों को ये आशीर्वाद दिया कि आज मैं जहां सती हो रही हूं, उस जगह पर जो भी मनुष्य अपनी मनोकामना लेकर आयेगा, उसकी वो इच्छा जरुर पूरी होगी।
वैसे कहा तो ये भी जाता है कि मां शीतला देवी शक्ति अवतार हैं और ये भगवान शिव की जीवन साथी है। पौराणिक कथाओं की माने तो शीतला देवी की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई थी। कहा जाता है कि जब देवलोक से माता शीतला धरती पर आ रही थी,
तब वो भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर उसे साथ लायी थी। उस समय मां के हाथों में दाल के कुछ दाने भी थे।
जब वो धरती पर रहने आयी तो उस समय के राजा, राजा विराट ने शीतला माता को अपने राज्य में रहने के लिए कोई जगह नहीं दी। इस बात पर माता को बहुत क्रोध आया और वो गुस्से से लाल हो गयी।
उनकी उस क्रोध कि अग्नि से राजा विराट की सारी प्रजा के शरीर में लाल-लाल दाने निकल लाये, इतना ही नहीं, गर्मी की वजह से लोग मरने लगे। ये सब देखकर जब राजा विराट को अपनी गलती का एहसास हुआ।
उन्होंने तुरंत माता के क्रोध को शांत करने की एक तरकीब सोची। उन्होंने शीतला माता को ठंड़ा दूध और कच्ची लस्सी चढ़ाई तब जाकर मां का क्रोध शांत हुआ और तभी से हर साल शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को ठंड़े भोजन का ही भोग लगाया जाता है।
अब आप सोच रहें होंगे कि शीतला अष्टमी के दिन ही ऐसा क्यों होता है..
दरअसल, ये दिन मां शीतला को बहुत ज्यादा प्रिय है या आप ये भी कह सकते है कि शीतला अष्टमी का दिन शीतला मां को समर्पित है, इसलिए इस दिन का खास महत्व है। इस दिन जो भी व्यक्ति माता की पूजा- अर्चना कर के पूरी श्रद्धा के सात व्रत करता है,
उसको सुख शांति और धन की कभी कोई कमी नहीं होती।
स्कन्द पुराण में माता कि अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से बहुत विस्तार से बताया गया है। आपको बता दें, शीतलाष्टक की रचना खुद भगवान भोलेनाथ ने की थी, जिससे मनुष्यों का कल्याण हो सकें।
माता की इस पूजा में शुद्धता का बहुत ज्यादा ध्यान रखा जाता है। इस खास पूजा में शीतलाष्टमी के एक दिन पहले शीतला देवी का भोग तैयार कर लिया जाता है और शीतलाष्टमी के दिन फिर उसी बासी खाने का भोग लगाया जाता है। कई जगह बासी खाने को बसौड़ा भी कहते है।
तो दोस्तों शीतला माता के इस मंदिर में एक बार आप दर्शन करने आप भी जरुर जायें। आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें जरुर बतायें, साथ ही अगर आप इसका वीडियो देखना चाहते हैं, तो दिये गये लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं।