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क्या हुआ जब एक बालक यमराज से सवाल करने यमपुरी पहुंच गया

by Divine Tales

दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे बालक के बारे में बतायेंगे जो यमराज से मिलने के लिए यमपुरी पहुंच गया था… इतना ही नहीं जब वो यमराज से मिला तो उसने यमदेव से ऐसे सवाल किये कि उनका सिर चकरा गया…

दरअसल, नचिकेता नाम का एक बालक हुआ करता था.. जो ऋषि वाजश्रवा का पुत्र था.. एक बार वाजश्रवा ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन करवाया था.. जिसमें उन्होंने कई विद्वानों, ऋषि- मुनियों और ब्राह्मणों को बुलाया था… ऋषि वाजश्रवा ने एक घोषणा भी करवायी थी कि यज्ञ के बाद वो अपनी सारी संपत्ति दान कर देंगे… इसे देखने के लिए यज्ञ में अच्छी- खासी भीड़ जमा हो गयी थी… इस घोषणा की वजह से सभी को उनसे बहुत उम्मीदें थी।

यज्ञ का दिन आया.. सारे विधि विधान के साथ यज्ञ को पूरा किया गया.. इसके बाद जब वाजश्रवा ने सभी को दक्षिणा देना शुरु किया तो सब लोग हैरान रह गये… क्यों कि वो दान में जो गायें दे रहा था… वो या तो बूढ़ी थी या फिर बीमार.. और तो और वो गायें दूध भी नही देती थी।

यज्ञ में आये लोगो ने जब वाजश्रवा के दान का ये स्तर देखा तो उन्हें बहुत गुस्सा आया.. लेकिन सब कुछ सहते हुये वो लोग वहां से चुपचाप चले गये।

नचिकेता से य़े सब देखा न गया… उसे ये बात बिल्कुल अच्छी नही लगी कि उसके पिता अपनी संपत्ति से इतना मोह करते है… उसने जाकर अपने पिता से बोला आप ये क्या कर रहें है.. दान में अपनी वो चींजें दी जाती है.. जिसे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हो… लेकिन आप ने तो वो गाय दान दी है.. जो बीमार है… वाजश्रवा ने झल्लाते हुये कहा अब दान के बारे में तुम मुझे बताओंगे… बालक हो बालक बनकर ही रहो।

नचिकेता ने प्यार से कहा.. पिताजी मैं कुछ गलत नहीं कह रहा हूं… आपको को तो मैं सबसे ज्यादा प्रिय हूं न तो फिर बताइये आप मुझे किसको दान में देंगे… वाजश्रवा ने कहा… फालतू बातें मत करो मुझसे… मुझे जो दान देना था वो मैं दे चुका हूं.. लेकिन नचिकेता बहुत जिद्दी था वो बार- बार अपने पिता को दान का मतलब समझाता रहा और उनसे पूछता रहा कि आप मुझे दान में किसे देंगे… आखिर में वाजश्रवा ने झल्लाकर कर कहा मैं तुम्हें यमराज को दान में देता हूं.. जिस पल उसने ये कहा उसके अगले ही पल उसे एहसास हुआ ये मैंने क्या कह दिया… मैं अपने बेटे को किसी को नहीं दूंगा… नचिकेता ने कहा… आप चिंता न करें पिताश्री आपने मुझे यमदेव को दान में दिया है न.. तो मैं उनके पास जरुर जाऊंगा।

इसके बाद कई दिनों तक लगातार चलने के बाद जब वो यमपुरी पहुंचा तो उसे देखकर यमदूत चौंक गये.. और सोचने लगे.. ये कैसा बालक है.. इसे मत्यु से डर नहीं लगता.. ये यमपुरी कैसे आ गया.. थोड़ी देर सोचन के बाद उन्होंने नचिकेत से पूछा… कौन हो तुम और यहां क्यों आये हो… तब नचिकेत ने उन्हें अपना नाम बताया और कहा मैं यहां यमराज से मिलने आया हूं.. मेरे पिता ने मुझे उन्हें दान में दिया है… द्वरपालों ने कहा… ये कैसी बात कर रहें हो.. वापस लौट जाओ, वैसे भी यमदेव अभी यहां नहीं है… इस पर उस बालक ने कहा ठीक है मैं यहीं उनका इंतजार करता हूं।

इसके बाद नचिकेत तीन दिनों तक यमुपरी के द्वार पर ही बैठा रहा.. दूसरी तरफ जब ये सारी बात यमदेव को पता चली तो वो नचिकेत से मिलने के लिए बहुत उत्साहित हुये.. और तुरंत यमपुरी आ गये… नचिकेत को देखते ही उन्होंने तुरंत उसे अपने पास बुलाया.. और कहा बालक तुम्हारे पिता के लिए जो तुम्हारी भक्ति है मैं उसे देखकर बहुत खुश हूं… तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो… ये सुनकर नचिकेत बहुत खुश हुआ… उसने कहा पहला वरदान आप मुझे ये दें कि मेरे पिता गुस्सा करना छोड़ दें.. और पहले की तरह मुझसे बहुत प्यार करें… यमराज ने तुरंत तथास्तु कहकर उसे पहला वरदान दे दिया… दूसरा वरदान मांगते समय वो सोचने लगा.. मेरे पिता ने यज्ञ स्वर्ग पाने के लिए किया था.. तो क्यों न मैं ही उसे प्राप्त कर लूं.. उसने दूसरे वरदान में यमराज से कहा आप मुझे ये बतायें कि स्वर्ग कैसे प्राप्त किया जा सकता है… ये सुनकर यमराज का सिर चकराया लेकिन वचन से बंधे होने की वजह से उन्होंने उसे ये भी बता दिया।

तीसरे वचन में नचिकेता सोचने लगा अब और क्या मांगू… बहुत देर सोचने के बाद उसने यमदेव से कहा.. आप मुझे मृत्यु के बारे में बतायें… ये सुनते ही बहुत देर तक यमदेव को कुछ समझ नहीं आया… बहुत देर सोचन के बाद उन्होंने कहा.. नचिकेता ये बात समझने के लिए तुम अभी बहुत छोटे हो… लेकिन नचिकेता की जिद्द के आगे यमराज की भी नहीं चली.. आखिर में यमराज ने कहा बालक सच तो ये है कि इस विषय का पूरा ज्ञान मुझे भी नहीं है… लेकिन अगर तुम इस बारे में जानना चाहते हो तो तुम्हें पूरा ज्ञान प्राप्त करना होगा.. क्योंकि विद्या वो चाबी है, जो तुम्हारे सारे सवालों के जवाब देगी।

नचिकेता को जीवन की सही राह पता चल चुकी थी.. और उसी राह पर आगे चलकर वो एक बहुत बड़ा विद्वान बना.. नचिकेता का वर्णन तैतरीय ब्राह्मण, कठोपनिषद् और महाभारत में भी मिलता है।

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