दोस्तों त्रेतायुग युग में एक राजा हुआ करते थे… जो जनक जी के पूर्वज थे… राजा होते हुए भी वो खेती- किसानी कर के ही अपने परिवार का ध्यान रखते थे.. क्यों की राज्य के लोगो से जो भी कर यानी की टैक्स उन्हें मिलता था वो उसे राज्य के लोगो की सेवा में ही लगा देते।
साधारण कपड़े पहनना और सादा भोजन करना, ये उनकी पहचान थी.. और ये कोई और नहीं बल्कि राजा चक्रवेण थे… एक बार राजा चक्रवेन के नगर में बहुत बड़ा उत्सव हो रहा था.. तभी नगर की सारी स्त्रियां सुंदर वस्त्र और गहने पहनकर महारानी से मिलने गयी… अपनी महारानी को ऐसे देखकर वो चौंक गयी और बोली.. आप तो पूरे नगर की महारानी हो.. आपके पास भला किसी चीज की क्या कमी.. फिर आप उत्सव के लिए तैयार क्यों नहीं हुयी.. आपने इतने सादे कपड़े क्यों पहने हुए हैं… आप के कपड़े और गहने तो हम से सुंदर होने चाहिए.. फिर आप ने श्रृंगार क्यों नहीं किया है.. रानी ने उनसे कुछ नहीं कहा.. लेकिन उन स्त्रियों की बाते रानी के दिल में चुभ गयी।
शाम को जब राजा चक्रवेण वापस आये तो रानी ने उन्हें सारी बात बतायी और बोली… आज मुझे अपनी प्रजा की स्त्रियों के सामने बहुत शर्मिंदा होना पड़ा… जहां एक ओर वो सुंदर वस्त्र और गहने पहनी थी.. वहीं मैं उनके सामने साधारण से गहने और सारी पहनकर खड़ी थी.. राजा ने कहा हम लोग अपना खर्च किसानी से चलाते हैं.. उस से जो भी कमाई होती है.. उसमें मैं तुम्हारी जरुरतों को पूरा करता हूं… ऐसे में तुम्हारें गहने कैसे बनवायें.. पर तुम्हारी खुशी का ध्यान रखना भी मेरा फर्ज है… इतना कहकर राजा ने अपने सैनिक को बुलाया और उससे कहा तुम लंकपति रावण के पास जाओं और उससे बोलो राजा चक्रवेण ने आपसे कर के रुप में सोना मांगा हैं।
उधर दूत के मुंह से कर की बात सुनकर रावण हंसने लगे… और बोला मूर्खों की कमी नहीं है संसार में.. इस राजा की हिम्मत तो देखो लंकापति से रावण से कर मांग रहा है… इतने में वो दूत बोला लंकेश आपको कर तो देना ही पड़ेगा.. खुशी से दे दो तो आपके लिए ही अच्छा है… दूत के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर रावण का खून खौल गया… उसने कहा.. जो करते बने कर लो मैं तुम्हारे राजा को कर नहीं दूंगा।
रात को जब रावण अपने कक्ष में गया तो उसने अपनी पत्नी मंदोदरी को सारी बात बतायी और बोला.. जिस रावण के यहां इंद्र पानी भरता है.. वायु देव झाडू लगाते है.. भाग्य की देवी सिलबट्टे पर मसाला पिसती है और शनिदेव उल्टे लटके हैं.. उस लंकेश से वो चक्रवेण कर के रुप में सोना मांग रहा है.. मंदोदरी ने कहा आप अभी राजा चक्रवेण के बार में नहीं जानते हैं… आपको उन्हें कर दे देना चाहिए।
सुबह हुयी तो रानी मंदोदरी रावण को अपने सात छत पर ले गयी… वहां बहुत सारे कबुतर दाना चुग रहे थे.. मंदोदरी ने उन कबूतरों से कहा.. तुम लोगो को लंकापति रावण की कसम है.. अब तुम लोग दाना नहीं चुगोगे… उनके इतना कहने के बाद भी कबूतर ने खाना खाना नहीं बंद किया… तब मंदोदरी ने कबूतर को फिर कहा, तुम्हें राजा चक्रवेण की सौगंध है.. अब तुम से कोई भी इन दानों को नहीं चुकेगा।
मंदोदरी के इतना कहते ही सारे कबूतरों ने दाना चुगना बंद कर दिया.. लेकिन उनमें से एक कबूतरी ने रानी की बात नहीं मानी और दाना चुगती रही.. जिसकी वजह से उसका सिर फट गया और वो मर गयी.. दरअसल वो कबूतरी बहरी थी.. इसलिए वो मंदोदरी की बात सुन ही नहीं पायी थी।
इसके बाद मंदोदरी ने कहा स्वामी आपने देखा राजा चक्रवेण के नाम का कितना प्रभाव है… रावण ने कहा ये जरुर तुम्हरी किसी माया का असर है… मैं नहीं मानता तुम्हारी कोई बात… फिर रावण वापस अपने दरबार चला गया.. वहां राजा चक्रवेण का दूत पहले से ही मौजूद था.. उसने कहा लंकेश आपने कुछ सोचा, आप कर कब देंगे… रावण ने फिर मना कर दिया.. तब उस दूत ने कहा आप मेरे साथ समुद्र किनार चलिये आपको कुछ दिखाना है।
रावण उस दूत के साथ समुद्र किनारे पहुंचा.. दूत ने वहां पर बालू से हूबहू वैसी ही लंका बना रखी थी.. जैसी रावण की असली लंका थी.. रावण बोला तुम तो बहुत बढ़िया कारीगर हो तुमने बालू की बिल्कुल वैसी ही लंका बनाई है.. जैसी मेरी है… दूत ने कहा अब आप बस देखते जाइये… उस दूत ने राजा चक्रवेण का नाम लेकर बालू की बनी लंका का एक द्वार तोड़ दिया.. इधर उसने ऐसा किया.. उधर असली लंका का भी वहीं द्वार टूट गया.. ये देखकर रावण चौंक गया… वो दूत बोला… तो बताइयें लंकेश आप कर दें रहें हैं या मैं आपकी सारी लंका ऐसे ही तोड़ दूं।
रावण ने कहा तुम जितना चाहो उतना कर ले लो… लेकिन इस घटना के बारे में किसी को मत बताना… इसके बाद वो दूत रावण से कर लेकर राजा चक्रवेण के पास गया और महारानी को सारा सोना दे दिया… ये देखकर महारानी को बहुत हैरानी हुयी वो पूछने लगी आखिर रावण ने तुम्हें ये कर कैसे दे दिया… तब उस दूत ने उन्हें सारी बता दी… सारी बात जानकर रानी को समझ आ गया उनका असली शोभा उनके पति है कुछ और नहीं।
दोस्तों इस कथा से साफ हो गया सत्य और धर्म जिसके साथ होता है.. उसके सामने अर्धम को झुकना ही पड़ता है।