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गणेश जी के इस मंदिर से गायब है उनकी सूड़

by Divine Tales

दोस्तों ये तो आप सब जानते है कि भगवान गणेश से उनकी सूढ़ का गहरा रिश्ता.. या फिर कहे कि गणपति जी की सूढ़ उनकी पहचान है… आपने हर मंदिर में गणेश जी को उनकी सूड़ के साथ ही देखा होगा.. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे अनोखे मंदिर के बारे में बतायेंगे… जहां गणेश जी बिना सूड़ के विराजमान है.

गणेश जी के इस मंदिर से गायब है उनकी सूड़

गणेश जी के इस मंदिर से गायब है उनकी सूड़

राजस्थान की राजधानी जयपुर में गढ़ गणेश नाम से गजानन का एक प्रचीन मंदिर है, जो लगभग तीन सौ पचास साल पुराना है… उत्तर में अरावली की पहाड़ी पर ये मंदिर एक मुकुट के जैसा दिखाई पड़ता है… ये एकलौता ऐसा मंदिर है जहां भगवान गणेश के बाल रुप की प्रतिमा स्थापित है.. इसीलिए यहां पर गणेश जी बिना सूड़ के विद्यमान है।

नाहरगढ़ की पहाड़ी में इस मंदिर में महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणपति जी के बाल स्वरुप की पूरे विधि- विधान के साथ स्थापना करवायी थी… कहते है इस मंदिर की स्थापना तांत्रिक विधि से की गई है… मान्यता है कि पहले के राजा महाराजा अपने दिन की शुरुआत गणेश जी के दर्शन कर के करते थे..

इसलिए इस मंदिर को कुछ इस तरह से बनवाया गया कि सिटी पैलेस के इंद्र महल से महाराज दूरबीन से भगवान गणेश के दर्शन कर सकें… मंदिर की खास बात ये भी है कि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए रोज एक सीढ़ी बनवायी जाती थी और इसलिए मंदिर का निर्माण काम पूरे साल चला और मंदिर में कुल तीन सौ पैसठ सीढ़िया बनी।  

बाल गणपति के इस अनोखे और अद्भभुत रुप के दर्शन करने देश के कोने- कोने से भक्त आते हैं.. खासकर बुधवार के दिन यहां भारी भींड़ देखने को मिलती है… श्रद्धालुओं की माने तो इस मंदिर में व्यक्ति जो भी इच्छा लेकर आता है वो जरुरी पूरी होती है… मंदिर में दो चूहों की प्रतिमा है, जिनकें कानों में भक्त अपनी इच्छाएं बतातें है.. मान्यता है कि वो दोनों चूहें भक्तों की मनोकामना को बाल गणेश तक पहुंचाने का काम करते हैं।

आपको बता दें इस मंदिर में जाते समय रास्ते में एक शिव जी का भी मंदिर पड़ता है… जहां वो अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान है… भगवान गणेश के साथ इस मंदिर के दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है।

दोस्तों आपने भगवान गणेश के दांत टूटने की कथा तो बहुत बार सुनी होगी.. पर क्या आप ये जानते है कि उनका वो टूटा हुआ दांत धरती पर आज भी मौजूद है…

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित गणेश जी की एक हजार साल पुरानी मूर्ति मिली थी… जो कि काले ग्रेनाईट पत्थर से बनी हुयी थी.. जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से करीब 25 किमी दूर ढोलकल पहाड़ पर साढ़े तीन फीट उंची ये प्रतिमा समुद्र तल से लगभग 2592 फीट ऊंचे स्थान पर स्थापित हैं… ये मूर्ति 6 फीट ऊंची और 21 फीट चौड़ी है।

आपको बता दें, बैलाडीला की पहाड़ी श्रृंखला में ढोलकल नाम से ये पहाड़ काफी मशहूर है.. क्योंकि यही वो जगह है जहां भगवान गणेश और परशुराम जी के बीच भीषण लड़ाई हुई थी…. इस क्षेत्र में ये कथा कही जाती है कि भगवान गणेश और परशुराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था… इसी वजह से इस जगह को बहुत खास मान जाता है।

 इस घटना को हमेशा जीवित रखने के लिए 10वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजाओं ने गणेश जी की ढोल की आकृति वाली एक मूर्ति इस पहाड़ी पर स्थापित की।

जैसा की सभी को पता है कि परशुराम जी के फरसे से गणेश जी का दांत टूटा था.. इसलिए पहाड़ के शिखर के नीचे वाले एक गांव का नाम फरसपाल रखा गया… हर साल यहां आसपास के ग्रामीण पहुंच कर गणेशोत्सव के समय पूजा-अर्चना करते हैं।

वैसे आप लोगो ने अब तक भगवान के दांत टूटने के पीछे परशुराम जी वाली कथा ही सुनी होगी… लेकिन आज हम आपको इससे जुड़ी एक ऐसी कथा बतायेंगें जो कुमार कार्तिकेय से जुड़ी है..

भविष्य पुराण के चौथे कल्प के अनुसार, गणेश विघ्नहर्ता ही नहीं विघ्नकर्ता भी हैं… एक बार गणेश जी के बड़े भाई कुमार कार्तिकेय स्त्री-पुरुषों के श्रेष्ठ लक्षणों पर ग्रंथ लिख रहे थे.. जिसमें गणेश जी ने इतना विघ्न पैदा किया कि कार्तिकेय क्रोधित हो गए और उनके एक दांत को पकड़कर तोड़ दिया।

जब शिव जी को इस बात का पता चला तब उन्होंने कुमार कार्तिकेय को समझाकर गणेश जी को उनका टूटा दांत वापस दिलवा दिया… लेकिन इसके साथ ही भगवान कार्तिकेय ने उन्हें एक श्राप भी दिया था.. उन्होंने कहा कि गणेश जी को अपना टूटा दांत हमेशा अपने हाथ में रखना होगा.. अगर वो अपने इस दांत को खुद से अलग करेंगे तो यही टूटा दांत उन्हें भष्म कर देगा… गणेश जी ने इस श्राप के स्वीकर करके अपना टूटा दांत वापस ले लिया।

दोस्तों आपको ये जानकारी कैसी लगीं हमें जरुर बतायें। अगर आप इसका वीडियो देखना चाहते हैं, तो दिये गये लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं।

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