दोस्तों एक बार कि बात है एक गांव में दयाराम नाम का एक किसान अपनी पत्नी शीला के साथ रहा करता था… किसी तरह गन्ने की खेती करके वो अपने परिवार का गुजर- बसर किया करता था… लेकिन कुछ समय से बारिश न होंने की वजह से गन्ने की फसल भी कुछ खास अच्छी नही हो रही थी… इसलिए खेती करने के बाद जो भी समय बचता उसमें दयाराम मजदूरी करने लगा… ताकि घर खर्च भर के रुपये निकला किसी तरह निकल आयें।
उधर दयाराम की पत्नी शीला महादेव की बहुत बड़ी भक्त थी… उनकी पूजा के बिना उसके दिन की शुरुआत नही होती थी… शीला की एक बहुत अच्छी आदत थी.. वो जब भी खाना पकाती… तो उसमें तीन हिस्से भगवान के लिए निकाल दिया करती थी… पहला भगवान गणेश के लिए, दूसरा शिव जी और पार्वती जी के लिए और तीसरा देवी अन्नपूर्णा के लिए… इन सभी भगवानों का भोग निकालने के बाद वो दयाराम के साथ अपनी थाली लगाकर खाना खाती थी… खाना खाने के बाद वो भोग की थाली का भोजन गाय को खिला दिया करती थी।
इसी तरह उनका जीवन किसी तरह कट रहा था… एक दिन दयाराम काम से वापस लौटा तो उसने देखा उसकी पत्नी गाय को रोटी खिला रही है… ये देखकर वो बहुत हैरान हुआ उसने कहा अरे ये तुम क्या कर रही हो… यहां अपना खाना ही इतना मुश्किल से नसीब होता है.. और उसमें भी तुम इन गायों को रोटी खिला देती हो … अरे कुछ तो सोचो मेरी मेहनत के बारे में… शीला ने कहा… आप ऐसा क्यों कह रहे हैं … आपको पता नही गाय में तैंतीस कोटी देवी- देवता वास करते है… क्या पता महादेव की कृपा हम पर हो जाये और आपकी कमाई बढ़ जाये।
दयाराम ने कहा अब तक तो कुछ हुआ नही.. आगे का क्या ही कहें खैर.. तुम्हें सही लगता है तो तुम करो ये सब… अगले दिन जब दयाराम मजदूरी पर गया तो उसे सच में दुगना फायदा हुआ.. उसे जब दिहाड़ी मिली तो वो बहुत खुश हुआ… उसने सोचा ये सब उसकी पत्नी के विश्वास का ही नतीजा है.. इसलिए आज की कमाई मैं उसी को दूंगा।
दयाराम खुशी- खुशी घर पहुंचा और जोर- जोर से चिल्लाकर शीला को पुकारने लगा… शीला ने कहा क्या हुआ क्यों चिल्ला रहे हो.. दयाराम ने कहा.. देखो आज कितनी कमाई हुयी है मेरी… ये सब तुम्हारी भक्ति का ही फल है.. इसलिए ये सब तुम रखो… इन रुपयों का तुम जो करना चाहे वो करो… शीला ये सब देखकर बहुत खुश हुयी.. उसने कहा.. करना क्या, चलिये मंदिर चलते है… शिवजी के दर्शन भी कर लेंगे और इसमें से कुछ पैसे दान कर देंगे… ताकी जरुरतमंदों की मदद हो सके।
इसके बाद दोनों शंकर जी के मंदिर गये पूजा- अर्चना की और धन दान कर के घर वापस आ गये।
इसी तरह उनका घर चलता रहा… पर एक दिन दयाराम की तबीयत अचानक खराब हो गयी… डॉक्टर ने उसे बताया कि तुम्हार दिल कमजोर हो गया… इसलिए अब कम से कम तुम्हें तीन महीने तक कोई काम नही करना है… ये सुनकर तो शीला की सांसे ही अटक गयी… वो जोर- जोर से रोते हुए बोली… हे महादेव अब घर कैसे चलेगा… अगर ये काम नही करेंगे.. तो खाने और दवाईयों के पैसे कहा से आयेंगा।
पर कहते है न जब आप की भक्ति सच्ची होती है… तो आपके दुख में भगवान भी दुखी होते है… ये सब देखकर भगवान शिव बहुत दुखी हुए… उन्होंने तय किया की वो अपने भक्त की मदद खुद करेंगे.. उन्होंने इंद्र देव से कहा मैं अपने भक्त के खेत में खुद किसानी करुंगा.. आप बस सही समय पर वर्षा कर देना… इतना ही नही उन्होंने देवी अन्नपूर्णा से कहा कि आप इस बार दयाराम के खेतों में अच्छी फसल करा देना।
इसके बाद भगवान शिव किसान का रुप ऱखकर दयाराम के खेत में दिन-रात मेहनत करने लगे… और सही समय आने पर उसके खेतों में गन्ने की फसल लहराने लगी… एक दिन शीला सो रही थी कि उसके सपने में महादेव ने उसे दर्शन दिये और कहा.. शीला मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हो… इसलिए अब समय आ गया है कि तुम्हें तुम्हारी भक्ति का फल दिया जाये.. तुम्हें चिंता करने की जरुरत नही है.. तुम्हारे खेत में मैंने खुद किसानी कर के फसन उगा दी है.. जिसे बेचकर तुम अपनी जिंदगी अच्छे से बीता सकती हो.. इतना ही नही बहुत जल्द तुम्हारे घर एक नन्हा मेहमान भी आय़ेगा… ये सब कहकर भगवान शंकर अंतरध्यान हो गये… तभी शीला की नींद भी खुल गयी.. उसने बिना समय गवायें सारी बात दयाराम को बतायी.. जिसके बाद दोनो पति- पत्नी सच का पता लगाने खेत पहुंच गये।
खेत में दोनों जो कुछ देखा उसके बाद वो हक्का- बक्का रह गया.. खेत में गन्ने की ऐसी फसल पिछले कई सालों से नही हुयी थी… दोनों भगवान शिव की शुक्रिया किया.. और तुरंत दर्शन के लिए मंदिर पहुंच गये.. उन्होंने भगवान शिव का अभिषेक कर उन्हें तरह- तरह के पकवानों का भोग लगाया… पूजा कर के दोनों लौट ही रहे थे कि तभी मंदिर की सीढ़ियों पर एक नन्हा बालक जोर- जोर से रो रहा था… शीला ने जब उसे देखा तो उसकी ममता उमड़ आयी… वो सोचने लगी आखिर इतने छोटे बच्चे को सीढ़ियों में छोड़कर कौन चला गया… तभी भगवान शिव पुजारी के भेष में आयें और बोले… पुत्री एक दुर्घटना में इस बच्चे के माता- पिता की मृत्यु हो गयी.. अगर तुम इसे पाल पाओ तो ले जाओ।
ये सुनते ही शीला की आंखों से आंसू छलक आये.. उसने दयाराम से कहा हमारे वैसे भी कोई संतान नही है.. क्यों हम लोग इसका ही पालन- पोषण करें.. इसे माता- पिता की छाया मिल जायेगी… और हमें संतान का सुख.. दयाराम ने कहा भगवान शिवजी की मर्जी के आगे भला मैं क्या ही कह सकता हूं… आज से ये बालक हमारा हुआ।
इस तरह शीला की सच्ची भक्ति ने उसकी जिंदगी खुशियों से भर दी।