दुर्योधन ने कभी श्री कृष्ण को पसंद नहीं किया

दोस्तों आपने पूरी महाभारत में ये कई बार सुना होगा कि दुर्योधन ने कभी श्री कृष्ण को पसंद नहीं किया… इतना ही नहीं उसने तो उन्हें बंधक बनाने का भी प्रयास किया था… दुर्योधन न कभी श्री कृष्ण को समझ पाया और न ही उनकी कही बातों को… लेकिन सोचने वाली बात हैं कि जब दुर्योधन श्रीकृष्ण से इतनी नफरत करता था तो फिर ये दोनों एक- दूसरे के समधी कैसे बन गये..
दरअसल, श्री कृष्ण की आठ पटरानियों में से एक पटरानी जाम्बवंती थी… और उसी से उन्हें एक पुत्र साम्ब हुआ था… साम्ब श्रीकृष्ण की तरह ही सभी कलाओं में माहिर तो था ही… साथ ही उसकी सुंदरता भी ऐसी थी कि कोई भी उस पर मोहित हो जाएं.. और ऐसा ही कुछ हुआ दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा के साथ.. लक्ष्मणा ने जैसे ही साम्ब को देखा वो उसकी खूबसूरती की दीवानी हो गई…
ये बात सांब को पता चली… तो उसने भरी सभा से लक्ष्मणा को भगाकर उससे शादी कर ली.. और इस तरह दुर्योधन और श्रीकृष्ण समधी हो गए।
वैसे आपको बता दें.. महाभारत के सभापर्व के अध्याय चार की माने तो साम्ब के साथ- साथ उसके भाई प्रद्युम्न, सात्यकि और निरुद्ध ने धनुर विद्या अर्जुन से ही प्राप्त की थी… और तो और सांब और प्रद्युम्न को मायावी शक्तियों का भी अच्छा- खासा ज्ञान था।
क्या आप जानते हैं.. अपने पिता श्री कृष्ण के समान महापराक्रमी और बुद्धिमान सांब का जन्म कैसे हुआ…
वैसे तो भगवान कृष्ण को सभी आठ पटरानियों से कई संतानों की प्राप्ति थी.. लेकिन जाम्बवंती से उन्हें कोई भी संतान प्राप्त नहीं थी.. और ये बात जाम्बवंती को अंदर ही अंदर खाये जा रही थी… इस बात से जाम्बवंती परेशान रहने लगी…
जब उससे नहीं रहा गया.. तो वो एक दिन रोते- रोते अपने पति श्री कृष्ण के पास गयी.. और उनसे अपने मन के सारे दुख- दर्द बतायें… जाम्बवंती ने कहा..
स्वामी आपकी सभी रानियों के संतान है.. सिवाये मेरे… और अब ये दुख मुझसे सहन नहीं होता.. मैं भी मां बनने का सुख महसूस करना चाहती हूं.. मैं भी चाहती हूं कि मेरी भी एक संतान हो.. जो आपको पिता श्री कहकर पुकारे।
जाम्बवंती की तकलीफ सुनकर श्रीकृष्ण ने उन्हें बड़े प्यार से समझाया… और उनसे कहा.. तुम चिंता न करो जाम्बवंती मैं अभी ऋषि उपमन्यु के आश्रम जाता हूं.. और उनसे ही इसके लिए कोई उपाय पूछता हूं।
अपने पति की बात मानकर जाम्बवंती ने चैन की सांस ली… उधर दूसरी ओर श्री कृष्ण ऋषि उपमन्यु के पास गए.. और उनसे अपने परेशानी बताई.. तब ऋषि ने उन्हें शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने को कहा… कृष्ण जी चाहते थे कि उनका पुत्र महादेव की तरह ही हो…
और ये तो हम सभी जानते है कि… महादेव का मुख्य कार्य संसार की भलाई के लिए विनाश करना है… और यही सांब ने भी किया।
लगातार छः महीने तपस्या करने के बाद जांबवंती की कोख भर आयी… और शिव शंभू की कृपा से जांबवंती को एक पुत्र की प्राप्ति हुई.. जिसका नाम सांब रखा गया।
आपको बता दें.. सांब का जन्म द्वारका के विनाश के लिए ही हुआ था… और ये बात श्रीकृष्ण बहुत अच्छे से जानते थे… माना जाता है कि महाभारत युद्ध के करीब छत्तीस साल बाद एक दिन द्वारका में महाऋषि विश्वामित्र, देवऋषि नारद अन्य ऋषियों के साथ आये…
तभी सांब और उसके दोस्तों ने उनसे मजाक करने की कोश्शि की.. उन्होंने सांब को एक गर्भवती स्त्री का रुप देकर उन ऋषियों के पास ले गए.. और उनसे कहने लगे… आप इतने बुद्धिमान और ज्ञानी है ऋषिवर.. कृपया इस स्त्री को देखकर बताइये… कि इसे पुत्र प्राप्त होगा.. या पुत्री।
ऋषि समझ गए कि… ये सभी बालक मिलकर उनका मजाक बना रहे हैं.. वो क्रोध से आग- बबूला हो गया.. उनके गुस्से की सीमा न रही.. और उन्होंने सांब को श्राप दे देते हुए कहा… श्रीकृष्ण के ये पुत्र सांब उसके पूरे वंश के नाश का कारण बनेगा… सांब से एक लोहे का मूसल उत्पन्न होगा.. और उससे ही श्रीकृष्ण की मृत्यु होगी।
ये सुनकर सभी बालक कांपने लगे… और ऋषि- मुनियों से मांफी मांगने लगे.. लेकिन ये सब कुछ नियति द्वारा तय था.. इसलिए श्राप के अनुसार यही हुआ.. दूसरे दिन सांब ने लोहे का एक मूसल पैदा किया… लेकिन राजा उग्रसेन ने उसे चुराकर नदी में फेंक दिया।
लेकिन विधि के विधान को कोई नहीं बदल सकता.. धीरे- धीरे वो समय भी पास आ गया.. जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था.. द्वारका में पाप बढ़ने लगा.. जिसकी वजह से बलराम ने समाधि लेली.. और भगवान कृष्ण जंगल की ओर चले गए।
वही दूसरी ओर जो मूसल नदी में फेंका गया था.. उसे एक मछली ने निगल लिया था.. जिसके बाद वो मूसल एक धातू बन गया… और जब उस मछली का शिकार एक बहेलिये ने किया… तो उस धातु से ही एक तीर बन गया.. और उसी तीर से श्रीकृष्ण के इस रुप का अंत हुआ।
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