पुरातन काल में कई दुराचारी राक्षस रहे जिन्होंने जबरदस्ती या जानबूझकर किसी न किसी स्त्री के साथ नजदीकियां बनाई…. लेकिन क्या आपको पता है….कई देव भी इस लिस्ट में शामिल हैं… पर सोचने वाली बात है कि ऐसा नीच काम किस देव का होगा…
बता दें… ऐसा करने वाले देव की लिस्ट में पहला नाम आता है… देवराज इंद्र का…
ब्रह्मवैवर्त और पद्मपुराण की मानें तो एक बार देवराज इंद्र जंगल में बनी एक ऋषि की कुटिया के पास जा पहुंचे… उन्होंने उस कुटिया में एक बहुत ही सुंदर स्त्री को देखा जिसपर वो मोहित हो गए….
बता दें कि ये कुटिया महान तपस्वी गौतम ऋषि की थी। जिस स्त्री को देखकर इंद्र मंत्र-मुग्ध हुए वो महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या थीं।
अहिल्या की सुंदरता इंद्र देव को बहुत ज्यादा भा गई। देवराज अहिल्या के साथ नजदीकियां बनाने की तरकीब सोचने लगे। उन्होंने अहिल्या के पति गौतम ऋषि की दिनचर्या पर नजर रखना शुरू कर दिया।
गौतम ऋषि रोज सूर्य उदय से पहले जग जाते और अपने नित्यकर्म समाप्त करने के नदी किनारे जाते थे। वो वहां 2 से 3 घंटे का समय व्यतीत कर फिर से कुटिया में आते।
बस फिर क्या देवराज इंद्र ने इसी मौके का फायदा उठाया और एक योजना बनाई।
वहीं एक बार रात में जब गौतम ऋषि और अहिल्या निद्रा में थे, तब कुछ समय बाद इंद्रदेव ने अपनी शक्ति से भोर कर दी थी…. ऋषि को लगा कि सुबह होने वाली है, वो हर रोज की तरह उठ गए और रोज के काम करने के लिए निकल गए।
तभी इंद्र ने ऋषि का रूप धारण कर अहिल्या से मीठी-मीठी बातें की और उसके साथ नजदीकियां बनाईं….वहीं दूसरी तरफ, जब ऋषि नदी किनारे पहुंचे तो वहां के जनजीवन को देखकर उन्हें महसूस हो गया कि किसी ने धोखे से सुबह की है… वह तुरंत अपनी कुटिया में पहुंचे, जहां उनके भेस में इंद्र उनकी पत्नी के साथ सो रहे थे।
यह देखकर गौतम ऋषि क्रोध से लाल हो गए…. तभी उन्होंने अहिल्या को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। वहीं, कामवासना की लालसा में घिरे इंद्रदेव को भी श्राप दिया कि उसके शरीर पर हजार योनियां उग आएंगी। वह चाहते हुए भी किसी स्त्री के साथ नजदीकियां नहीं बना पाएंगे।
श्राप का असर धीरे-धीरे होने लगा…. देखते ही देखते स्वर्ग लोक के देव के पूरे शरीर पर योनियां उभर आईं। बाद में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने गौतम ऋषि से क्षमा याचना की।
ऋषि ने उन्हें माफ कर दिया लेकिन कहा कि एक बार श्राप दे दिया इसलिए वापस नहीं लिया जा सकता। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आपके शरीर पर उभरी ये योनियां आंखों में बदल जाएंगी। इस वजह से इंद्र के पूरे शरीर पर आखें ही आंखें हो गईं।
वहीं दूसरी ओर अहिल्या ने भी गौतम ऋषि से कहा कि उन्हें बिल्कुल भी यह महसूस नहीं हुआ कि उनके भेस में कोई और व्यक्ति उनके साथ सोया है। इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी। उनके मन में छल की कोई भावना नहीं थी।
जिसके बाद ही गौतम ऋषि ने पत्नी अहिल्या को वरदान दिया कि कालांतर में श्री हरि का अवतार तुम्हारे पास आएगा और उनके छूने से तुम फिर से पहले जैसी बन जाओगी। कई सालों बाद त्रेतायुग में प्रभु श्री राम ने विष्णु के सातवें अवतार के रूप में धरती पर जन्म लिया और उन्होंने ही बाद में अहिल्या को छूकर उन्हें श्राप से मुक्त किया।
वहीं दूसरे देव जिन्होंने स्त्री का बलत्कार किया वो हैं…. चंद्र देव…
चांद को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं… एक बेहद प्रचलित पौराणिक मान्यता की मानें तो चंद्र देव जिसका रिश्ता देवों के गुरु बृहस्पति की पत्नी से जुड़ा है… कहते हैं, बृहस्पति से शिक्षा लेने के बाद चंद्रमा ने एक ऐसा अपराध कर दिया जिससे देवगुरु का क्रोध चरम सीमा पर पहुंच गया…
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि चंद्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण कर लिया था… चंद्रमा ने तारा से विवाह कर लिया जिससे बुध ग्रह का जन्म हुआ…
इस विवाद के बाद बृहस्पति और चंद्रमा में भीषण युद्ध हुआ…उस युद्ध में बृहस्पति ने चंद्रमा को पराजित कर दिया…. कहते हैं उसके बाद चंद्रमा को बृहस्पति की पत्नी तारा को वापस करना पड़ा….
वहीं एक और कथा की मानें तो देवगुरु बृहस्पति से चंद्रमा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तभी उनकी पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी…. चंद्रमा भी तारा पर मुग्ध हो गए….
दोनों में प्रेम हो गया और तारा चंद्रमा के साथ ही रहने चली गई… बृहस्पति इससे बहुत नाराज हुए…. उन्होंने चंद्रमा से अपनी पत्नी लौटाने को कहा लेकिन न तो चंद्रमा तारा को लौटाने को राजी थे और न ही तारा वापस जाना चाहती थीं…
इसी बात पर बृहस्पति और उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध शुरू हो गया… दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य और बृहस्पति में पहले से ही बैर था…. इसलिए शुक्र चंद्रमा के साथ हो गए…बलि चंद्रमा के ससुर थे….वह भी चंद्रमा की मदद के लिए आ गए…
असुरों के चंद्रमा के साथ हो जाने से देवताओं ने युद्ध में बृहस्पति का साथ दिया… गुरु शिष्य के बीच शुरू हुए झगड़े ने महासंग्राम का रूप ले लिया…. बृहस्पति के पिता अंगीरस शिवजी के विद्यागुरु थे…. वह अपने गुरुपुत्र के पक्ष में युद्ध के लिए गणों के साथ आ गए….
वहीं ब्रह्मा को डर लगा कि इस युद्ध के वजह से कहीं सृष्टि का ही अंत न हो जाए…. वह बीच-बचाव कर युद्ध रुकवाने की कोशिश करने लगे…. ब्रह्मा तारा के पास गए और समझाया कि उसके प्रेम संबंध की वजह से संसार खतरे में है… उसे बृहस्पति के पास चले जाना चाहिए….जिसके बाद तारा चंद्रमा को छोड़ वापस बृहस्पति के पास चली गई।