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देवाधिदेव महादेव के शक्तिशाली अस्त्र

by Tulsi Pandey
LORD SHIVA

देवाधिदेव  महादेव जिनका न ही कोई आरम्भ है और न ही अंत। महादेव का अर्थ है देवताओं में सबसे उच्च। शिव एक ऐसे देवता हैं जिनका क्रोध और प्रेम दोनों ही चरम है। शिव जी के विषय में चर्चा हो और उनके अस्त्रों की बात न हो ऐसा तो संभव ही नहीं। इस पोस्ट में हम बताएँगे शिव जी के भयंकर अस्त्रों के बारे में जो इतने विध्वंसक थे कि उनका एक प्रयोग समस्त पृथ्वी को तबाह करने में सक्षम था। आइये जानते हैं शिव जी के अस्त्रों और उनकी विशेषताओं के बारे में।

त्रिशूल

भगवान महादेव  के हाथ में त्रिशूल तीन गुणों अर्थात सत्व, रज एवं तम गुणों को दर्शाता है। साथ ही त्रिशूल मनुष्य शरीर और मस्तिष्क में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने की शक्ति का भी प्रतीक है। मानव शरीर में एक स्थान पर तीन नाड़ियों का मिलाप होता है। जो त्रिशूल की ही आकृति का है।  ये तीन नाड़ियां इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना कहलाती हैं।  इड़ा एवम पिंगला को इनकी विशेषताओं के आधार पर शिव और शक्ति का नाम दिया गया है। वहीँ सुषुम्ना नाड़ी बहुत शक्तिशाली है।

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 कहा जाता है कि यदि मनुष्य सुषुम्ना नाड़ी पर ऊर्जा को केंद्रित करने में सक्षम हो जाता है तो बाहरी दुनिया की हलचल उसे प्रभावित नहीं कर सकती।ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में जब ब्रह्मनाद ने शिव को उत्पन्न किया। तब साथ में ये तीन गुण भी उत्पन्न हुए।  इस सृष्टि में सामंजस्य बैठाने के लिए इन गुणों के मध्य सामंजस्य बिठाना आवश्यक था। इसलिए शिव जी ने इन तीन गुणों को अपने हाथ में धारण किया। शिव जी का यह अस्त्र बहुत ही घातक और विनाशकारी है।

धनुष पिनाक

धनुष पिनाक का निर्माण स्वयं शिव जी ने ही किया था। इस धनुष की ध्वनि मात्र से ही पर्वत हिल जाते थे और बादल फटने लगते थे। सम्पूर्ण पृथ्वी पर भूकंप जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती थी।  पुराणों में उल्लेखनीय है कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ में शिव का भाग नहीं निकाला तो क्रोध में शिव ने सभी देवताओं का विनाश करने का निश्चय किया। तब बहुत मुश्किल से महादेव का क्रोध शांत कर पिनाक धनुष देवताओं को दे दिया गया। अंततः यह धनुष देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को दिया। राजा जनक ने इसे शिव की धरोहर समझकर सुरक्षित रूप से रखा हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि इस धनुष उठाने कि क्षमता हर किसी में नहीं थी। परन्तु भगवान् राम ने इसे एक झटके में ही तोड़ दिया था। इसके अतिरिक्त शिव जी के पास भवरेंदु नाम का एक बहुत ही शक्तिशाली चक्र था। ऐसा कहा जाता है कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भी शिव जी ने ही किया था। पर  बाद में इसे भगवान् विष्णु को दे दिया। आवश्यकता पड़ने पर विष्णु जी ने सुदर्शन माता पार्वती को दिया। पार्वती से यह परशुराम के पास गया और भगवान् कृष्ण को सुदर्शन परशुराम से प्राप्त हुआ था।

पाशुपतास्त्र

शिव जी का प्रमुख, सबसे प्रिय और सबसे विध्वंसक अस्त्र है पाशुपतास्त्र।  इसके प्रहार से बचना बहुत ही कठिन था। यह सम्पूर्ण सृष्टि का विनाश करने में सक्षम था। इस अस्त्र को पशुपतिनाथ ने ब्रह्माण्ड की रचना से पूर्व तपस्या कर आदि शक्ति से प्राप्त किया था। चूँकि इस अस्त्र से पूरी पृथ्वी को नष्ट किया जा सकता था इसी कारण अर्जुन ने इसका प्रयोग नहीं किया था। पाशुपतास्त्र को केवल भगवान् विष्णु का सुदर्शन चक्र ही प्रभावहीन कर सकता था। यह अस्त्र चारों दिशाओं से विजय दिला सकता था। और इसे आँख, शब्द, धनुष या मन से छोड़ा जा सकता था।

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 ऐसा कहा जाता है कि शिव इसी अस्त्र से सृष्टि का विनाश  करेंगे। पुराणों के उल्लेख से ज्ञात होता है कि जब पाशुपतास्त्र चलाया जाता था तो इसके आसपास सब कुछ नष्ट हो जाता था। इसका प्रयोग होने से नकारात्मक शक्तियां जैसे दैत्य, शैतान, आत्माएं आ जाते थे और इसे और भी शक्तिशाली बना देते थे। पाशुपतास्त्र का एक स्तोत्र भी है जिसके द्वारा जीवन में हर क्षेत्र में विजय प्राप्त की जा सकती है। इसका जप करने से मनुष्य जीवन की सभी विघ्नो का नाश हो सकता है। पाशुपतास्त्र के सामने जीवित या मृत सब कुछ नष्ट हो जाता था। परन्तु इतना विध्वंसक होने के बावजूद भी पुरातन काल का सर्वाधिक शक्तिशाली अस्त्र पाशुपतास्त्र नहीं है। ब्रह्मा द्वारा निर्मित ब्रह्मदण्ड अस्त्र एवं भगवान् विष्णु का नारायणास्त्र पाशुपतास्त्र से भी कहीं अधिक शक्तिशाली और विनाशकारी है। 

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