दोस्तों क्या आप जानते है.. देवताओं के धन की रक्षा करने वाले.. और सभी धरती वासियों को धन देने वाले भगवान कुबेर ने एक नहीं बल्कि कई बार चोरी की… लेकिन अब सोचने वाली बात है.. जिसके पास इतना धन हो.. भला उसे कही चोरी करने की क्या जरुरत आ पड़ी।
दरअसल स्कंद पुराण के अनुसार कुबेर जी का जन्म पिछले जन्म में एक ब्राह्मण कुल में हुआ था.. और उनका नाम गुणनिधि था.. गुणनिधि के अंदर चोरी करने की बहुत गंदी आदत थी… और जब उसकी इस आदत के बारे में इसके पिता को पता चला.. तो उन्होंने उसे घर से निकाल दिया।
घर से निकाले जाने के बाद गुणनिधि और बिगड़ गया.. उसकी चोरी की आदत और बढ़ गयी… उसने चोरी को अपना पेशा बना लिया… अलग- अलग घरों दुकानों में जाकर वो चोरी करता.. और फिर सब से छुपने के लिये भाग- भागा फिरता… एक दिन गुणनिधि चोरी करने के लिए भगवान शिव के मंदिर जा पहुंचा… मंदिर जाकर वहां का चढ़ावा देखकर वो बहुत खुश हुआ.. उसने अपने मन में कहा… यहां चोरी करने के बाद तो मुझे जिंदगी में चोरी करने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी… इतना सारा धन और सोना है इस मंदिर में.. अब तो मैं माला- माल हो जाऊंगा… दिन होने की वजह से वो मंदिर में छुप कर बैठ गया.. रात होते ही सभी लोग और पुजारी मंदिर से चले गये.. पूरा मंदिर खाली हो गया… गुणनिधि ने सोचा.. ये सही समय है चोरी का।
लेकिन रात होने की वजह से अंधेरा इतना ज्यादा था.. कि कुछ भी ठीक से नहीं दिखाई दे रहा था.. गुणनिधि ने किसी तरह दिया और माचिस ढूंढ कर उसे जलाया.. लेकिन हवा तेज होने की वजह से वो दिया बुझ गया… उसने फिर से दिये को जलाया.. और हवा की वजह से दिया फिर से बुझ गया… ऐसा बार- बार होता गया।
उधर भगवान शिव ने सोचा.. कितना सच्चा भक्त है मेरा.. आधी रात को मेरे लिए दीप अराधना कर रहा है.. इसे इसकी भक्ति का फल तो मिलना ही चाहिए… इसके बाद भगवान शंकर गुणनिधि के सामने प्रकट हो गये.. और उसे दर्शन दिये… इतना ही नहीं उन्होंने गुणनिधि को ये आशीर्वाद दिया कि वो अपने अगले जन्म में भगवान कुबेर के नाम से जाना जायेगा.. और सारे धन की रक्षा करेगा… यानि की उसके पास इतना धन होगा.. जो सबको बांटने से भी कम नहीं पड़ेगा।
आपको बता दें.. महर्षि याज्ञवल्क्य के लिखे ग्रंथ के अनुसार.. भगवान कुबेर को चोरों और अपराधियों का स्वामी बताया गया है… इतना ही नही.. कई महाकाव्यों में ये भी कहा गया कि कुबेर का राक्षसी लोग जैसे पिशाच, गुह्यक और राक्षस के साथ काफी गहरा रिश्ता था।
भगवान कुबेर को राक्षस के अलावा यक्ष भी कहा गया है… यक्ष एक तरह का संपत्ति का रक्षक ही होता है… वो उसकी रक्षा तो करता लेकिन उसका इस्तेमाल नही कर पाता… कुबेर जी का जो दिग्पाल रूप है.. वो भी उनके रक्षक और पहरेदार रूप को स्पष्ट करता है… पुराने मंदिरों के बाहरी भागों में कुबेर की कई मूर्तियां देखी गयी है… कहा जाता है कि इसके पीछे का रहस्य यही है कि वे मंदिरों के धन के रक्षक के रूप में माने जाते हैं।
कई धर्म ग्रंथों के अनुसार कुबेर जी को रावण का सौतेला भाई भी कह गया है… लेकिन क्या आप जानते है.. ऐसा क्यों है..
रामायण की माने तो महर्षि पुलस्त्य भगावन ब्रह्मा के मानस पुत्र थे… और उनका विवाह तृणबिंदु राजा की पुत्री से हुआ था… महर्षि पुलस्त्य के पुत्र का नाम विश्रवा था.. वो भी अपने पिता के तरह सत्यवादी तो था ही.. साथ ही उसने अपनी इंद्रियो को अपने वश में कर रखा था… महामुनि भरद्वाज उनके इन गुणों से इतने प्रसन्न हुए कि, उन्होंने अपनी पुत्री इड़विड़ा का विवाह उनके साथ करा दिया।
महर्षि विश्रवा के पुत्र भी हुआ.. जिसका नाम वैश्रवण रखा गया.. और वैश्रवण को ही कुबेर के नाम से जाना गया… महर्षि विश्रवा की एक पत्नी और थी.. जिसका नाम कैकसी था… कैकसी राक्षसकुल कन्या थी.. और कैकसी ने ही रावण, कुंभकर्ण और विभीषण को जन्म दिया था। इस तरह से रावण को कुबेर का सौतेला भाई भी कहा जाता है।