होम रामायण पहले के समय में पति-पत्नी का मिलन दिन के हिसाब से क्यों होता था ?

पहले के समय में पति-पत्नी का मिलन दिन के हिसाब से क्यों होता था ?

by Divine Tales

दोस्तों, जहां आज के मॉडर्न समय में पति-पत्नी काम के जाल में फंसकर किसी भी समय मिलन कर लेते है वहीं पहले के समय में ऐसी चीजों के लिए समय निर्धारित किया गया था… इसके पीछे भी बहुत बड़ा और खास कारण है… दरअसल, अगर कोई अपनी इंद्रियों पर कंट्रोल न करके किसी भी समय मिलन करता है तो इसका बहुत खतरनाक खामियाजा भुगतना पड़ता है….

इससे जुड़ा एक जीता-जागता प्रमाण हमें विष्णु पुराण की एक कथा में भी मिलता है….

दरअसल, एक बार की बात है दक्ष पुत्री दिती ने काम के वश में आकर अपने पति मारीचीनंदन कश्यप जी से प्रेम करने के लिए कहा लेकिन उस समय ऋषि कश्यप शाम की पूजा की तैयारी में लगे हुए थे… ऐसा माना जाता था कि शाम के समय ये सब करना शुभ नहीं होता और ऋषि कश्यप भी इस बात से अच्छी तरह से परिचित थे… जिसके बाद वो अपनी पत्नी को समझाते हुए कहते हैं कि इस पहर के बीत जाने तक तुम्हे ठहरना होगा क्योंकि यही वो समय है जिस समय राक्षस और प्रत आत्माओं की ताकत दोगनी होती है और वो बहुत ज्यादा सक्रीय भी रहती हैं… और सिर्फ इतनी ही नहीं इसी समय महादेव अपने तीसरे नेत्र से सभी पर नजर रखते हैं…. इसी लिए ये समय बहुत गलत है… वहीं जो भी पिशाच वाली हरक शाम के समय करता उसको नरक में कई खतरनाक यातनाओं से गुजरना पड़ता है….

इतना समझाने के बाद भी दिती के कान में जूं तक नहीं रेंगा… क्योंकि वो पूरी तरह से काम के वश में थी… जिसके बाद कश्यप जी ने एक बार फिर से उनको इसके बाद के परिणाम के बारे में समझाया लेकिन दिती कहा भला किसी की सुनने वाली थीं…

मजबूरी में आकर ऋषि कश्यप को अपनी पत्नी की जिद पूरी करनी पड़ी… लेकिन फिर जब दिती एकांत में बैठी और उन्होंने अपनी जिद और कार्य के बारे में सोचा तो वो बहुत लज्जित हो गईं… वो अपने इस पाप के लिए पश्चाताप करना चाहती थीं… इसीलिए वो अपने पति के सामने आंखों में शर्म लेकर सिर छुका कर खड़ी हो गईं…

उन्होंने ने कहा कि मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया है मैंने भूतों के स्वामी भोलेनाथ का अपमान किया है मुझे ऐसा हरगिर नहीं करना चाहिए था… मैं उनसे माफी मांगती हूं बस वो मेरे इस गर्भ को नष्ट न करें….

तभी ऋषि कश्यप कहते हैं कि जब मैंने तुमको समझाने की कोशिश की थी तब तुमने मेरी एक न सुनी अब इसके परिणाम के तौर पर तुम्हारे गर्भ से दो ऐसे पुत्र जन्म लेंगे जो बहुत अधर्मी होंगे…

वो दोनों ही बालक अपने आतंक से सभी का जीवन दूबर कर देंगे और तब स्वयं श्री हरी  को अवतार लेना पड़ेगा… इसके साथ ही उन्होंने ने कहा की तीन पुत्र तो दैत्य होंगे पर तुम्हारा एक पुत्र श्री हरी का सबसे बड़ा भक्त बनेगा….

अपने पति के मुह से ऐसी बाते सुनकर उसे आशंका होने लगी की कहीं देवताओं के कष्ट का कारण जानें अंजाने कहीं उसके पुत्र न बन जाएं…. इसी डर केचलते उसने गर्भ में पल रहे बच्चों को 100 सालों तक गर्भ में ही रखने का फैसला किया, लेकिन उसके बावजूद उसके गर्भ में पल रहे इन दोनों संतानों का प्रभाव सभी दिशाओं में दिखने लगा जिसे देखकर सभी देवता घबरा गए…

और ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उनसे इसे समस्या के इलाज के लिए प्रार्थना करने लगे। सभी देवताओं की इस बात को सुनकर ब्रह्मा जी ने सभी को बताया कि एक बार श्री विष्णु के पार्षदों जय और विजय ने अंजाने में आकर मुनियों को बैकुंठधाम के अंदर जाने से रोक दिया…. जिससे क्रोधित होकर उन्होंने दोनों पार्षदों को श्राप दिया कि वो दोनों ही अपने पद का त्याग कर पाप से भरी योनि में जन्म लेंगे….

इसके साथ ही ब्रह्मा जी ने ये भी बताया कि इस समय दिती के गर्भ में पल रहे बच्चें वही दोनों दैत्य हैं…. बस फिर क्या होना था भयानक अंधकार के बाद दिती ने दो जुड़वा पुत्र को जन्म दिया…. जिसमें से एक हिरण्यकशपु और दूसरा हिरण्याक्ष था…

दोस्तों, सिर्फ यही नहीं जन्म लेते ही दोनों एक बड़े से पहाड़ की तरह विशाल हो गए… जिसके बाद दोनों ही आदि दैत्य के नाम से जाने जाने लगे…. सिर्फ यही दोनों नहीं बल्कि उस रात दिती ने एक कन्या को भी जन्म दिया सिंहीता था…

तो दोस्तों, इसी लिए कहा जाता है कि हर काम का एक उचित समय होता है… अगर हम इस बात को गंभीरता से नहीं लेगें तो जैसा दिती के साथ हुआ वैसा किसी के साथ भी हो सकती है….

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