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भगवान विष्णु ने क्यों दी अपनी ही पत्नी को नौकरानी बनने की सजा ?

by Divine Tales
भगवान विष्णु ने क्यों दी अपनी ही पत्नी को नौकरानी बनने की सजा

दरअसल, विष्णु जी ने माता लक्ष्मी को ये सजा, किसी और वजह से नहीं.. बल्कि बगीचे से फूल चोरी करने की वजह से दी थी… लेकिन सोचने वाली बात है कि माता ने ऐसा क्यों किया..

दोस्तों, ये उस समय की बात है जब विष्णु जी धरतीलोक में भ्रमण के लिए आने की तैयारी कर रहे थे। ये देखकर माता लक्ष्मी के मन में ऐसी उत्सुकता जागी, कि वो विष्णु जी से सवाल किये बिना नहीं रह सकीं। माता ने उनसे पूछा.. स्वामी आप कहा जाने की तैयारी कर रहें है, उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा देवी मैं धरती लोक पर भ्रमण करने जा रहा हूं। लक्ष्मी जी ने कहा.. स्वामी मैं भी आपके साथ चलना चाहती हूं। 

ये सुनकर पहले तो भगवान नारायण बोलें देवी आप चलना चाहती है तो जरुर चलिए, लेकिन इसके लिए आपको मेरी एक शर्त माननी पडेंगी। शर्त ये है कि आप धरतीलोक पर उत्तर दिशा की ओर मत देखिएगा। लक्ष्मी जी ने ये शर्त मान ली और इसके बाद दोनों धरती लोक पर जाने के लिए निकल पड़ें।

सुबह- सुबह दोनों पति- पत्नी धरतीलोक पर पहुंचे, जहां रात को बरसात होने की वजह से वहां का मौसम काफी सुहावना हो गया था। ये देखकर माता लक्ष्मी जी प्रकृति की सुंदरता में इतना खो गई कि वो विष्णु जी को दी अपनी शर्त ही भूल गई। इधर- उधर देखते हुए वो उत्तर दिशा को ओर देखने लगी। वही पास के बगीचें से फूलों खुशबू आ रही थी मां लक्ष्मी वहीं गयी और वहां से फूल तोड़ने लगी। इसके बाद वो विष्णु जी के पास पहुंची।

माता के हाथों में फूल देखकर नारायण समझ गए कि लक्ष्मी जी अपनी शर्त भूल गई, लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा दुख इस बात का हुआ, कि वो किसी माली के बगीचे से फूल चुरा कर लायी है। माता लक्ष्मी को जब इस बात का एहसास हुआ तो उन्होंने प्रभु से माफी मांगी। तब विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा प्रिये, तुमसे जो गलती हुई है वो पाप की श्रेणी में आती है, इसलिए इस गलती की माफी नहीं बल्कि सज़ा मिलेगी। और इसकी सज़ा ये है कि जिस माली के बगीचे से तुम ये फूल तोड़कर लायी हो तुम्हें उसी के यहां तीन साल तक नौकरानी बनकर रहना होगा।

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इसके बाद भगवान विष्णु वापस बैकुंठ चले गए और माता एक करीब कन्या का रुप लेकर उस माली के घर चली गई। उस माली का नाम माधव था। माता जब माधव के घर पहुंची तो उन्होंने देखा कि घर के नाम पर माली के पास एक टूटी- फूटी सी कुटिया है, जिसमें उसकी पत्नी, तीन बेटियां और दो बेटे रहते थे।

लक्ष्मी जी माधव के पास गई और उससे बोली- बाबा मैं एक गरीब कन्या हूं, मेरी देखभाल करने वाला इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए अगर आप मुझे अपने यहां काम पर रख लें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। ये सुनकर माली चौंक गया उसने कहा- बेटी मैं तो खुद बहुत गरीब हूं, किसी तरह बगीचे के फूल बेचकर मैं अपना परिवार पाल रहा हूं। ऐसे में मैं तुम्हें क्या काम दूं, लेकिन अगर तुम चाहो तो यहां मेरी बेटी की तरह रह सकती हो जो कुछ रूखा- सूखा हम सब खाते हैं वहीं तुम्हें भी दे दिया करेंगे।

माधव की ये बातें सुनकर माता लक्ष्मी का मन मोम की तरह पिघल गया और वो वहां रहने के लिए तुंरत तैयार हो गयी।  

लेकिन माता के आने से माली के जीवन में चमत्कारी बदलाव आने लगा। उसकी फूलों की बिकरी इतनी बढ़ गयी कि उसने गाय, नया घर, पत्नी के लिए गहने और तो और अपनी बेटी और बेटों के लिए बहुत सारे नए- नए कपड़े भी खरीदें।

एक दिन माधव अकेला बैठा अपने पुराने दिनों को याद कर रहा था। तब उसका ध्यान इस बात गया कि ये कन्या कोई आम कन्या नहीं है, क्यों कि इसके आने के बाद से ही मेरे धंधे में इतनी बढ़ोत्तरी हुई है। ये जरुर किसी देवी का अंश है।

धीरे- धीरे समय बीत गया और माता को उस घर में तीन साल हो गए। एक रोज माधव खेतों से काम करके अपने घर वापस आया, उसने देखा उसके घर के दरवाजा पर एक देवीस्वरूप गहनों से लदी एक महिला खड़ी है। कुछ देर तक उसे देखने के बाद वो सब समझ कि ये कन्या कोई और नहीं बल्कि माता लक्ष्मी ही थी। इसके बाद माधव तुरंत माता से माफी मांगने लगा। माता ने उससे कहा- माधव तुम जैसे साफ दिल वाले इंसान के यहां रहकर मुझे बहुत अच्छा लगा, तुमने अपनी बेटी की तरह मुझे इतने साल तक अपने घर में रखा, इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूं कि आज से तुम्हारे घर में हर प्रकार की खुशियों का वास होगा और तुम्हारें घर में कभी भी धन की कमी नही होगी। इसके बाद माता लक्ष्मी रथ में बैठकर बैकुंठधाम वापस चली गयी।

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