होम शिव कथायें भगवान शिव के पांच रहस्यमयी मंदिर

भगवान शिव के पांच रहस्यमयी मंदिर

by Tulsi Pandey

पूरे भारत में भोले भंडारी यानि भगवान् शिव के अनेकों मंदिर हैं। जिसमे में से कुछ के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन आज में आपको भगवान महादेव के पांच ऐसे रहस्यमयी मंदिरों के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके बारे में आपने शायद ही सुना होगा। के बारे में बताने जा रहा हूँ जिनके बारे में जानकर आप हैरान रह जायेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर (STAMBHESHWAR MAHADEV TEMPLE)

यह मंदिर अरब सागर के बीच कैम्बे तट पर स्थित है। 150 पहले खोजे गए इस मंदिर का उल्लेख महाशिवपुराण के रुद्रसंहिता में मिलता है।इस मंदिर के शिवलिंग का आकार  चार फुट ऊँचा और दो फुट के व्यास वाला है।स्तंभेश्वर महादेव का यह मंदिर सुबह और शाम दिन में दो बार पलभर के लिए गायब हो जाता है। और कुछ देर बाद उसी जगह पर वापस भी आ जाता है। जिसका कारण अरब सागर में उठाने वाले ज्वार-और भांटा को बताया जाता है।

जिस कारण श्रद्धालु मंदिर के शिवलिंग का दर्शन तभी कर सकते हैं जब समुद्र की लहरें पूरी तरह शांत हो। ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है।यह प्रक्रिया प्राचीन समय से ही चली आ रही है। यहां आने वाले सभी श्रद्धालु को एक खास पर्चे बांटे जाते हैं। जिनमे ज्वार-भांटा आने का समय लिखा होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यहाँ आनेवाले श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना ना करना पड़े।

STAMBHESHWAR MAHADEV TEMPLE

इसके अलावे इस मदिर से एक पौराणिक कथा भी जुडी हुई है। कथा केअनुसार राक्षस तारकासुर ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। एक दिन शिव जी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। उसके बाद वरदान के रूप में तारकासुर ने शिव से माँगा की उसे सिर्फ शिवजी का पुत्र ही मार सकेगा। और वह भी छह दिन की आयु का।शिव जी ने यह वरदान तारकासुर को दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए।

इधर वरदान मिलते ही तारकासुर तीनो लोक में हाहाकार मचने लगा। जिससे डरकर सभी देवता गण शिव जी के पास गए। देवताओं की आग्रह पर शिव जी ने उसी समय अपनी शक्ति से श्वेत पर्वत कुंड से छह मस्तक,चार आँख और बारह हाथ वाले एक पुत्र को उत्पन्न किया।जिसका नाम कार्तिकेय रखा गया। जिसके पश्चात् कार्तिकेय ने छह दिन की उम्र में तारकासुर का वध किया। लेकिन जब कार्तिकेय को पता चला की तारकासुर भगवान शंकर का भक्त था तो वो काफी व्यथित हो गए। फिर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा की उस स्थान पर एक शिवालय बनवा दें। इससे उनका मन शांत होगा। भगवान कार्तिकेय ने ऐसा ही किया। फिर सभी देवताओं ने मिलकर वहीँ सागर संगम तीर्थ पर विश्वनंद स्तम्भ की स्थापना की जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।  

निष्कलंक महादेव (NISHKALANK MAHADEV TEMPLE)

यह मंदिर गुजरात के भावनगर में कोल्याक तट से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थिर है। रोज अरब सागर की लहरें यहाँ के शिवलिंगो का जलाभिषेक करती है। लोग पैदल चलकर ही इस मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। इसके लिए उन्हें ज्वार उतरने का इंतजार करना पड़ता है। ज्वार के समय सिर्फ मंदिर का खम्भा और पताका ही नजर आता है।जिसे  देखकर ये अंदाजा भी नहीं लगा सकता की समुन्द्र में पानी के निचे भगवान महादेव का प्राचीन मंदिर भी है।यह मंदिर महाभारत कालीन बताई जाती है। ऐसा मान जाता है की महाभारत युद्ध में पांडवों ने कौरवों का वध कर युद्ध जीता। पर युद्ध समाप्ति के बाद पांडवों को ज्ञात हुआ की उसने अपने ही सगे  सम्बन्धियों के हत्या कर महापाप किया है।

NISHKALANK MAHADEV TEMPLE

इस महापाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्री कृष्ण के पास गए। जहाँ श्री कृष्ण ने पांडवों को पाप से मुक्ति के लिए एक काला ध्वजा और एक काली गाय सौंपी। और पांडवों को गाय का अनुसरण करने को कहा। और कहा की जब गाय और ध्वजे का रंग काले से सफ़ेद हो जाये तो समझ लेना की तुम सबको  पाप से मुक्ति मिल गयी है। साथ ही श्री कृष्ण ने पांडवों से यह भी कहा की जिस जगह ये चमत्कार होगा वहीँ पर तुम भगवान शिव की तपस्या भी करना। पांचों भाई भगवान श्री कृष्ण के कहे अनुसार काली ध्वजा हाथ में लिए काली गाय पीछे-पीछे चलने लगे। इसी क्रम में वो सब  कई दिनी तक अलग अलग जगह पर गए। लेकिन गाय और ध्वजा का रंग नहीं बदला।पर  जब वो वर्तमान गुजरात में स्थित कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग सफ़ेद हो गया। इससे पांचों पांडव भाई बड़े खुश हुए। और वहीँ पर भगवान शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे। भगवान भोलेनाथ उनके तपस्या से खुश हुए और पांचों पांडव को लिंग रूप में अलग -अलग दर्शन दिए।

वही पांचो शिवलिंग अभी भी वहीँ स्थित है। पांचों शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा भी है। पांचों शिवलिंग एक वर्गाकार चबूतरे पर बने हुए हैं। तथा ये कोलियाक समुद्र तट से पूर्व की ओर तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर में स्थित है। इस चबूतरे पर एक छोटा सा पानी का तालाब भी है जिसे पांडव तालाब कहते हैं। श्रद्धालु पहले उसमे अपने हाथ पांव धोते हैं और फिर शिवलिंगों की पूजा अर्चना करते हैं। चूँकि यहाँ पर आकर पांडवों को अपने भाइयों की हत्या की कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे निष्कलंक महादेव कहते हैं। भादव के महीने में अमावश को यहाँ मेला लगता है जिसे भाद्रवी कहा जाता है।प्रत्येक अमावश के दिन यहाँ भक्तों की विशेष भीड़ रहती है। लोगों की ऐसी मान्यता है की यदि हम प्रियजनों की चिता की आग शिवलिंग पर लगाकर जल में प्रवाहित कर दें तो उनको मोक्ष मिल जाता है। मंदिर में भगवान शिव को राख,दूध-दही और नारियल चढ़ाये जाते हैं।सालाना प्रमुख मेला भाद्रवी भावनगर के महाराजा के वंशज के द्वारा मंदिर की पताका फहराने से शुरू होता है। और फिर यही पताका मंदिर पर अगले एक साल तक फहराती है।

अचलेश्वर महादेव मंदिर (ACHALESHWAR MAHADEV TEMPLE)

ACHALESHWAR MAHADEV TEMPLE

अचलेश्वर नाम से भारत में महादेव के कई मंदिर हैं। लेकिन राजस्थान के धौलपुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर बांकी सभी मंदिरों से अलग है। यह मंदिर  राजस्थान और मध्यप्रदेश की सिमा पर स्थित है। जो चम्बल और बीहड़ों के लिए प्रसिद्ध है। भगवान अचलेश्वर महादेव का यह मंदिर इन्ही दुर्गम बीहड़ों के बिच स्थित है। इस मंदिर का शिवलिंग जो दिन में तीन बार रंग बदलता है। सुबह में शिवलिंग का रंग लाल होता है,दोपहर में केसरिया और जैसे जैसे शाम होती है शिवलिंग का रंग सांवला हो जाता है।इन रंगों के बदलाव के रहस्य को कोई नहीं जनता। अचलेश्वर महादेव का यह मंदिर भी काफी प्राचीन है। चुकी मंदिर का यह इलाका डाकुओ के प्रसिद्ध था जिस वजह से यहाँ काम श्रद्धालु आते थे। साथ यहाँ तक पहुँचाने का रास्ता बहुत ही पथरीला और उबड़-खाबड़ था। पर जैसे जैसे भगवान के बारे में लोग जानने लगे यहाँ पर भक्तों की भीड़ जुटने लगी। इस शिवलिंग की एक और अनोखी बात यह है की इस शिवलिंग के छोर का आज तक पता नहीं चला है। कहते हैं बहुत समय पहले एक बार भक्तों ने  शिवलिंग की गहराई को जानने के लिए इसकी खुदाई की पर काफी गहराई तक खोदने के बाद भी इसके छोर का पता नहीं चला। अंत में भक्तों ने इसे भगवान का चमत्कार मानते हुए खुदाई बंद कर दी। भक्तों का मानना है की भगवान अचलेश्वर महादेव भक्तों की सभी मनोकामना पूरा करते हैं।

कैलाश महादेव मंदिर की कथा

लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर (LAKSHMESHWAR MAHADEV TEMPLE)

ऐसा माना जाता है की इस मंदिर की स्थापना  भगवान राम ने खड़ और दूषण के वध के पश्चात् अपने भाई लक्षमण के कहने पर की थी। लक्ष्मेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ गृह में एक शिवलिंग है जिसकी स्थापना स्वंय लक्षमण ने की थी। इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं। इसलिए इसे लक्ष लिंग भी कहा जाता है। इस लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है जो की पाताल गामी है। क्यूंकि उसमे जितना भी जल डालो वह सब उसमे समां जाता है। लेकिन एक छिद्र अक्षय कुंड है क्यूंकि उसमे जल हमेशा ही भरा रहता है। लक्ष लिंग पर चढ़ाया गया जल मंदिर के पीछे कुंड में भी चले जाने की मान्यता है। क्यूंकि कुंड कभी सूखता नहीं। लक्ष लिंग जमीन से करीब 30 फिट ऊपर है और इसे स्वन्वभू लिंग भी माना जाता है।

बिजली महादेव मंदिर (BIJALI MAHADEV TEMPLE)

BIJALI MAHADEV TEMPLE

भगवान शिव के अनेकों अद्भुत मंदिरों में से एक है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्थित बजली महादेव मंदिर। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में व्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊँचे पर्वत पर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है।पूरी कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है की ये घाटी ही एक विशालकाय सांप का रूप है। इस सांप का वध भगवान शिव ने किया था। जिस स्थान पर मंदिर है वहां शिवलिंग पर हर बारह वर्ष बाद आकाश से भयानक बिजली गिरती है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है। यहाँ के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े को एकत्रित कर मख्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं। कुछ समय बाद ही शिवलिंग ठोस रूप में परवर्तित हो जाता है। इस शिवलिंग पर हर बारह साल में बिजली क्यों गिरती है इसके लिए आई बटन पर क्लिक कर हमारा वीडियो बिजली महादेव मंदिर देखिये।  

0 कमेंट
0

You may also like

एक टिप्पणी छोड़ें