पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने शब्दभेदी बाण चलाकर मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार दिया था.. कहते है.. इनकी मुलाकत महाभारत के अश्वथामा से भी हुई थी

दोस्तों क्या आपने महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वीरता के किस्से सुने हैं… वहीं पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने शब्दभेदी बाण चलाकर मोहम्मद गोरी को मौत के घाट उतार दिया था.. कहते है.. इनकी मुलाकत महाभारत के अश्वथामा से भी हुई थी.. वहीं अश्वत्थामा जिन्हें महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने समय के अंत तक धरती पर भटकते रहने का श्राप दिया था.. पर सोचने वाली बात है कि आखिर अश्वत्थामा महाराज पृथ्वीराज से क्यों और कहां मिले?
दरअसल, महाराज पृथ्वीराज ने 1186 से 1191 के बीच मोहम्मद ग़ोरी को कई बार युद्ध में हराया.. लेकिन 1192 में वो मोहम्मद गौरी से युद्ध हार गये थे… जिसके बाद वो जंगल में रहने लगे.. वहां रहते हुए उन्हें एक शिव मंदिर दिखायी दिया… पृथ्वीराज रोज उस मंदिर में जाने लगे और सच्चे मन से शिव जी की पूजा करने लगे…
कहते है एक बार जब महाराज पृथ्वीराज चौहान सुबह- सुबह उस मंदिर में पूजा करने गये.. तो उन्होंने देखा कि उनसे पहले ही कोई मंदिर में पूजा कर चुका है.. क्यों कि शिवलिंग पर फूल- गुलाल आदि सब चढ़ा हुआ था.. इधर- उधर देखने पर उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति मिला.. जिसके सिर पर बहुत गहरा घाव था.. पृथ्वीराज चौहान जितने अच्छे युद्धा थे, उतने ही कुशल वैद्द भी थे.. उन्होंने जब उस आदमी का घाव देखा तो अपनी आयुर्वेदिक विद्या का इस्तेमाल कर के उसकी चोट को ठीक करने की कोश्शि करने लगे…
पृथ्वीराज चौहान के हिसाब से घाव को एक हफ्ते में ठीक हो जाना चाहिए थे… लेकिन एक हफ्ते बाद भी वो घाव वैसे का वैसे ही थे.. उसमें किसी तरह का कोई सुधार नही हुआ.. ये देखकर महाराज पृथ्वीराज को बहुत आश्चर्य हुआ.. इसके बाद जब उन्होंने उस बूढ़े व्यक्ति से पूछा कि क्या आप अश्वत्थामा है.. तो उसने अपना जवाब हां में दिया.. उसका जवाब सुनकर महाराज चौहान चौंक गये.. उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ.. तब अश्वत्थामा ने उनसे वरदान मांगने को कहा.. कहते है अश्वत्थामा ने ही उन्हें शब्दभेदी बाण चलाने की विद्या सीखायी थी..
इतना ही नहीं उन्होनें पृथ्वीराज चौहान को तीन शब्दभेदी बाण भी दिये थे.. जो कि अचूक थे और बाद में इसी विद्या और बाण का इस्तेमाल कर के उन्होंने मोहमम्द गोरी को मौत दी थी।
कई लोगों का मानना है कि ये मंदिर बुरहानपुर स्थित असीरगढ़ किले का वही शिव मंदिर था.. जहां अश्वत्थामा शिव जी की अराधना करने के लिए आज भी रोज आते है.. हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं।
बता दें, महाभारत के इस पात्र अश्वत्थामा की कहानी काफी रहस्यमयी और चौंकाने वाली है… क्यों कि इनकों मिले एक श्राप के कारण वो आज भी जीवित हैं और दर-दर भटक रहे हैं… कहते हैं अपने पिता की छल से हुई हत्या का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों की हत्या कर दी थी.. इतना ही नहीं पाण्डव वंश का नाश करने के लिए उसने अभिमन्यू की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया दिया था..
तब क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के माधे पर लगी चिंतामणि रत्न छीन ली और श्राप दिया की तुम दुनिया के खत्म होने से पहले मृत्यु को नहीं देख पाओगे।
मान्यता है कि अपने उस पाप कि सजा अश्वत्थामा आज भी भुगत रहे हैं और अपनी मुक्ति के लिए भटक रहे हैं… उनकी मौजूदगी का एहसास कई बार किया गया है.. बता दें, मध्यप्रदेश के बुरहानपुर शहर से करीब 20 किमी दूर असीरगढ़ का किला है.. यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि अश्वत्थामा आज भी इस किले में भगवान शिव की पूजा करने आते हैं..
जिसने भी उनको देखा है वो या तो जिंदा नहीं बचा या फिर उसकी मानसिक स्थिति हमेशा के लिए खराब हो गई.. यहां के बारे में ये भी कहा जाता है कि अश्वत्थामा पूजा करने से पहले किले के तालाब में स्नान भी करते हैं।
दोस्तों इसके साथ ही जबलपुर की नर्मदा नदी के गौरी घाट के किनारे भी अश्वत्थामा को भटकते हुए देखे जाने की बात कही जाती है… स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां नदी किनारे भटकते हुए अश्वत्थामा अपने घाव से बह रहे खून को रोकने के लिए कभी-कभी हल्दी और तेल मांगते हैं.. हालांकि इस संबंध में कोई प्रमाण आज तक नहीं मिल पाया है.. लेकिन इस तरह की बातें यहां पर लंबे समय से चली आ रही हैं।
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