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माता सरस्वती, लक्ष्मी और गंगा के बीच हुआ भयंकर झगड़ा,एक-दूसरों को दिया श्राप

by Divine Tales

क्या आप जानते हैं, मां सरस्वती ने एक बार ऐसा काम किया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उस एक गलती की वजह से उनको एक ऐसा शाप मिला जिसकी वजह से उन्हें धरती पर उतरना पड़ा। इसी श्राप का परिणाम माता लक्ष्मी और गंगा को भी भुगतना पड़ा…

पौराणिक कथा की मानें तो एक बार माता सरस्वती ब्रहम लोक में अपनी वीणा बजा रही थीं कि तभी माता लक्ष्मी वहां प्रकट हुईं। माता सरस्वती ने उनका स्वागत किया और आसन ग्रहण करने को कहा। वो माता लक्ष्मी के हाल चाल लेते हुईं पूछा कि माता आप अब ब्रह्म लोक क्यों नहीं आतीं….

तब अभिमान के साथ माता लक्ष्मी ने कहा कि उनके पास समय नहीं रहता है। और तो और उन्होंने ये भी कहा कि मैं जनकल्याण के कामों में बहुत व्यस्त रहती हूं… आज थोड़ा समय मिला तो सोचा आपसे मिल लूं… मुझे सबके धन, वैभव औऱ सुख देना होता… इसलिए समय नहीं मिलता…. मेरे बिना इस दुनिया का चल पाना असंभव है…

वहीं आगे माता लक्ष्मी ने मां सरस्वती पर कटाक्ष मारते हुए कहा कि अगर उन्हें भी सिर्फ ब्रहम लोक में वीणा बजाना होता तो उनके पास भी समय ही समय होता…

माता लक्ष्मी की अहंकारी बातें सुनकर मां सरस्वती को बहुत क्रोध आया… जिसके बाद उन्होंने भी माता लक्ष्मी को कटाक्ष मारते हुए कहा कि यह सत्य है कि आप वैभव की देवी हैं लेकिन फिर भी आपको चंचला कहा जाता… क्योंकि आपके पैर एक जगह नहीं टिकते… आप में बिलकुल भी स्थिरता नहीं है…

लेकिन मैं आपके बिलकुल विपरीत हूं… मैं जिस जगह भी जाती वहां आजीवन के लिए बस जाती हूं… आपको तो कोई चुरा भी सकता बल्कि मैं तो बांटने से बढ़ती हूं…

उन्होंने आगे कहा कि कोई भी मनुष्य कितना भी धनि क्यों न हो… जब तक में उसके साथ नहीं होती उसका जीवन मिट्टी के बराबर ही रहता है…

मां सरस्वती क्रोध में आग बूबला हो रखीं थी…. जिसके बाद आगे उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि अगर मैं न होती तो यज्ञ, मंत्रोच्चारण मुम्किन न होता…. बिना विद्या और ज्ञान के किसी भी मनुष्य का जीवन संभव ही नहीं है….

साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनके मंत्रों के बिना भगवान विष्णु की पूजा भी अधूरी है।

माता सरस्वती के तर्कों से भी माता लक्ष्मी संतुष्ट नहीं हुईं और न ही अपनी बातों से हिलीं…. जिसके बाद उन्होंने कहा कि अब इस विवाद का फैसला सिर्फ श्री हरी ही करेंगे….

बस फिर क्या होना था…. दोनों देवियां इस बात का फैसला जानने के लिए विष्णु लोक के लिए रवाना हो गईं। बता दें, वहां पर देवी गंगा पहले से ही मौजूद थीं। श्री हरी को ध्यान में लीन देखते ही माता लक्ष्मी उनके पास जाकर बैठ जाती हैं। लेकिन कोई भी मां सरस्वती को बैठने को नहीं कहता है। जिससे वो नाराज हो जाती हैं…

बस फिर क्या क्रोध में लाल मां सरस्वती ने माता लक्ष्मी से कहा कि आप खुद मुझे यहां लेकर आईँ हैं…और आपने मुझसे बैठने के लिए भी नहीं कहा…क्या विष्णु लोक में ऐसे ही अतिथियों का आदर किया जाता है?

इस पर मां लक्ष्मी बोलीं कि मेरा निवास श्री हरी के ह्रदय में हैं और देवी गंगा को स्वयं प्रभु हरी ने अपने चरणों में स्थान दिया है। इसके अलावा उनके पास कोई जगह खाली नहीं जहां आपको स्थान दिया जा सके।

इतना कह कर दोनों देवियां माता लक्ष्मी और गंगा जोर जोर से हंसने लगीं। अपना उपहास उड़ता देख मां सरस्वती के क्रोध की सीमा बढ़ती जा रही थी।

मां सरस्वती ने माता लक्ष्मी से कहा कि आपको बहुत अभिमान है अपने वैभव और श्री हरी के ह्रदय में होने का…. तो मैं आपको यहां से दूर कर दूंगी….

इतना कहकर मां सरस्वती ने माता लक्ष्मी को श्राप दे दिया और कहा कि आप विष्णु लोक छोड़कर धरती पर चली जाएंगी… और आप तुलसी के रूप में जन्म लेंगी… जहां जाकर आपका भगवान विष्णु से कोई संबंध नहीं रह जाएगा… और धरती पर आपका विवाह किसी असुर से होगा…

वहीं माता लक्ष्मी को दिए गए श्राप को सुनकर देवी गंगा को मां सरस्वती पर क्रोध आ गया और उन्होंने मां सरस्वती को श्राप दे दिया…. कि वो धरती पर नदी बनकर प्रकट होंगी…

दोस्तों, यह श्राप का सिलसिला यहीं नहीं थमा…. माता लक्ष्मी की तरकफदारी में देवी गंगा ने मां सरस्वती को श्राप तो दे दिया लेकिन उनको ये भेद भाव बिल्कुल भी नहीं भाया। उन्होंने क्रोधित होकर देवी गंगा को भी श्राप दे दिया कि वो श्री हरी के चरणों से निकल कर धरती पर नदी बनकर निकलेंगी। और अधिक से अधिक पापियों के संपर्क में आएंगी।

अब दोस्तों, क्रोध की अग्नि में तपते हुए तीनों ने एक दूसरे को श्राप तो दे दिया लेकिन जब उनका गुस्सा शांत हुआ तो तीनों को बहुत पछतावा हुआ…

तब तीनों मिलकर श्राप से मुक्ति पाने का उपाय ढूंढने लगीं। जिसपर भगवान विष्णु ने कहा कि श्राप का फल तो आपको भोगना ही पड़ेगा लेकिन कलियुग के दस हजार साल पूरे होने के बाद आप सभी देवियां पृथ्वी से अपने लोक में आकर वास्तविक स्वरूप में आकर मिल जाएंगी।

इस बीच आपको अपने अंश से नदियों के रूप में अवतरित होना पड़ेगा और देवी लक्ष्मी तुलसी का पौधा बनेंगी। माना जाता है कि देवी सरस्वती अब अपने लोक को लौट चुकी हैं और अब गंगा के स्वर्ग लौटने की तैयारी चल रही है।

माता सरस्वती, लक्ष्मी और गंगा में हुआ भयंकर झगड़ा। दिया एक दूसरे को श्राप। | माता सरस्वती, ल? | By The Divine Tales | Facebook

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