दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे तालाब के बारे में बतायेंगे… जो लंकापति रावण के मूत्र से बना है… पर सोचने वाली बात है कि ऐसा अपिवत्र तालाब धरती पर बना कैसे…
झारखंड के देवघर में स्थित बारह ज्तोतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग अपनी धार्मिक मान्यताओं के चलते काफी प्रचलित है… कहते हैं ये नवां ज्योतिर्लिंग है.. और इसकी स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी… इसी मंदिर के पास ही एक तालाब है… जिसमें सभी श्रद्धालु स्नान करने के बाद बाबा भोलेनाथ को जल चढ़ातें हैं… और इसी तालाब के पास में एक दूसरा तालाब है.. जिसमें स्नान- आचमन तो दू कोई उसे छूता तक नहीं है… ऐसा इसलिए क्यों कि वो लंकापति रावण के मूत्र से बना तालाब माना जाता है.. कहते हैं जो उस तालाब के जल को छू भर लेता है… उसे कई जन्मों का पाप लगता है.. और फिर उसे अपने उन पापों से जल्दी मुक्ति नहीं मिल पाती।
पर सोचने वाली है कि क्या रावण ने सच में इतना मूत्र विसर्जन किया कि उससे एक तालाब बन गया… इस सवाल के जवाब के लिए आपको एक पौराणिक कथा जाननी होगी…
दरअसल, लंकापति रावण महादेव को अपने साथ लंका ले जाना चाहता था… जिसके लिए उसने कई तरह के उपाय किये… लेकिन जब शिव जी से उसे कोई जवाब नहीं मिला तो आखिर में वो अपने सिर काटकर उन्हें चढ़ाने लगा… जिसके बाद भगवान शंकर ने उसे दर्शन दिये और उसके साथ लंका जाने के लिए तैयार हो गये.. लेकिन महादेव ने रावण से एक शर्त रखी.. उन्होंने कहा मैं शिवलिंग रुप में तुम्हारे साथ चलूंगा… लेकिन तुम उस शिवलिंग को जिस जगह एक बार रख दोगे मैं वहीं विराजमान हो जाऊंगा… यानी की फिर मैं वहां से नहीं हटूंगा।
रावण को अपने बलशाली होने पर इतना घंमड था कि उसने शिव जी की ये शर्त तुरंत मान ली… उसने सोचा शिवलिंग चाहे कितना ही भारी क्यों न हों.. मैं उसे एक बार ऊठाउंगा तो सीधा लंका जाकर ही स्थापित करुंगा।
इसके बाद उसने शिवलिंग को उठाया और उसे लेकर लंका की ओर चल दिया … ये देखकर सभी देवताओं को चिंता होने लगी…. और वो तुरंत भगवान विष्णु के पास गये और उनसे बोले प्रभु दशानन को रोकने के लिए अब आप ही कुछ करना होगा.. अगर रावण महादेव को लेकर लंका चला गया तो वो सारे संसार में हाहाकार मचा देगा।
उधर रावण बिना रुके लंका की तरफ चला जा रहे था कि तभी रास्ते में उसे लघु शंका लगी.. पर अब समस्या ये थी कि वो शिवलिंग को बिना नीचे रखे कैसे लघु शंका करें… और शर्त के मुताबिक वो शिवलिंग को नीचे नहीं रख सकता था… पर तभी दशानन की नजर एक बच्चे पर पड़ी..जो वहीं पास में खेल रहा था… उसने उस बालक को बुलाया और उससे विनती की कि कुछ समय के लिए वो इस शिवलिंग को अपने हाथों में थाम लें… उस बच्चे ने रावण की बात मान ली… फिर उसने उस बालक को शिवलिंग थमाया और लघु शंका करने चला गया।
भगवान ने ऐसी माया रची कि रावण को लघुशंका करने में अधिक समय लगने लगा… दरअसल, उसके पेट में इतना पानी समा गया था कि उसकी मूत्र खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी… दूसरी तरफ वो बालक आखिर कितनी देर शिवलिंग संभालता… थककर उसने शिवलिंग को वहीं जमीन पर रख दिया.. जिसके बाद वो शिवलिंग वही स्थापित हो गया।
वैसे आपको बता दें वो बालक कोई और नहीं बल्कि भगवान श्रीहरि विष्णु ही थे… और ये सारी लीला उन्हीं की रचायी हुयी थी।
रावण मूत्र विसर्जन करने के बाद जब वापस उस जगह लौटकर आया… तो उसने देखा शिवलिंग धरती पर रखा हुआ है… ये देखकर उसे बहुत गुस्सा आया और वो जोर से उस बालक पर चिल्लाने लगा.. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी… हालांकि दशानन ने उस शिवलिंग को हिलाने की बहुत कोश्शि की.. पर वो टस से मस नहीं हुआ… क्रोध में आकर उसने शिवलिंग पर इतनी जोर से पैर मारा की वो शिवलिंग जमीन के अंदर धस गया.. और आज भी ये शिवलिंग वैसे का वैसे ही है।
इस मंदिर की एक खास बात और है.. जो इसे बाकी शिव मंदिरों से अलग करती है.. वो ये की आमतौर पर शिव जी के मंदिर में उनके पास उनका त्रिशूल रहता है… लेकिन इस मंदिर में उनके पास त्रिशूल नहीं बल्कि पंजशूल है… जिसे महाशिवरात्री के दो दिन पहले उतारा जाता है.. और फिर महाशिवरात्री के एक दिन पहले पूरे विधि- विधान के साथ उसकी पूजा- अर्चना कर के उसे वापस स्थापित कर दिया जाता है.. कहते हैं इस प्रक्रिया के दौरान भगवान शंकर और माता पार्वती के गठबंधन को भी खोल दिया जाता है।