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राजा ययाति की बेकाबू जवानी की अनोखी कहानी

by Divine Tales

पौराणिक कथाओं की मानें तो ये बाता तब की है जब महाभारत काल में अमरावती में राजा ययाति राज़ करता था। राजा के सिर पर हमेशा से ही काम के बादल मंडराया करते थे….

एक बार की बात है जब ययाति की पत्नी देवयानी गर्भवती थी उसके बाद से ययाति अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पा रहा था… वो बहुत बेचैन रहने लगा था… उसके लिए एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था…

तभी एक दिन महल में घूमते-घूमते एक दिन उसकी नजर देवयानी की दासी शर्मिष्ठा पर गई… दरअसल, असल में शर्मिष्ठा कोई दासी नहीं बल्कि एक राजकुमारी थी… वो सिर्फ अपने पिता की वजह से देवयानी की दासी के तौर पर महल में रह रही थीं…

वहीं एक दिन मौका पाकर ययाति  सीधा शर्मिष्ठा की कुटिया में जा पहुंचा…. शर्मिस्था भी कम नहीं थी, मन ही मन ही बदले की भावना को दबाए हुए उसने  राजा की इस इच्छा को पूरा कर दिया….

ये प्रेम का सिलसिला यहीं नहीं रुका… राजा ने लगातार तीन सालों तक शर्मिष्ठा के साथ गंदा काम किया….इतना ही नहीं उसने तीन बार शर्मिष्ठा को गर्भवती भी किया।

लेकिन कहते हैं ना पाप आखिर कब तक छिपाया जा सकता है… एक दिन ययाति के गंदे अरादों का घड़ा भर गया और रानी को इसकी भनक लग गई… रानी ने गुस्से में आकार सारी बात अपने पिता गुरु शुक्राचार्य को बताई। फिर क्या होना था बेटी को इस बालत में टूटा देखकर क्रोध में आकर ऋषि ने अपने दामाद को श्राप दे दिया…. यह श्राप कोई ऐसा वैसा श्राप नहीं था…. उन्होंने सीधे राजा की जवानी ही छीन ली।

श्राप के चलते राजा वृद्ध हो गए थे…. ऐसी ही एक रात राजा के सपने में यमराज दिखे और बोले की ययाति तुम्हारे जाने का समय करीब आने वाला है… वहीं जैसे ही अगले दिन यमदूत उसे लेने आये तो वो उनसे अनुनय विनय करने लगा और कहने लगा हे यमराज मेरी ये हालत श्राप के कारण हुई है लेकिन अभी भी मेरी बहुत सी कामनाएं अधूरी है। कृपा करके आप मुझे 100 सालों का जीवन और दान के रुप में दे दें।

जब काम से मेरा पूरा मन भर जाएगा तब मैं राजी खुशी आपके साथ चल दूंगा… बार-बार जिद करने की वजह से अंत में यमराज को भी ययाति पर दया आ गई और उसने उसके सामने एक प्रस्ताव रख दिया….

यमराज ने कहा कि तेरे पांच पुत्र हैं, अगर उनमें से एक। कोई भी तुम्हें अपने हिस्से का यौवन देने को तैयार हो जाए तो तू यहीं रहेगा और बिना किसी रोक टोक के सुख पूर्वक अपनी इच्छाएं पूरी कर लेगा…. 

इसके बादा वो एक एक करके अपने सभी पुत्रों के पास गया और बेशरम होकर अपने पुत्रों के सामने यौवन की याचना करने लगा लेकिन उसके सभी पुत्रों ने उसे मना कर दिया। पर फिर अंत में बस शर्मिष्ठा का छोटा पुत्र पुरु इस बात के लिए राजी हो गया।

उसका ये त्याग देखकर यमराज पुरी को समझाने लगे कि पुत्र तुमने अभी देखा ही क्या है? क्या तुम इसे संसार के भोग को भोगने की इच्छा नहीं रखते?

तब ही पुरु ने उत्तर दिया कि यमराज संसार के इस भोग को नहीं भोगना चाहता और अपने पिता की अस हालत को देखने के बाद तो बिल्कुल भी नहीं…

बता दें, दोस्तों पुरु से प्राप्त हुआ यौवन के बाद एक बार फिर से ययाति अपनी अंधाधुंध काम की भावना  को पूरा करने में लग गया और कब इन सब में 100 साल बीत गए उसे पता ही नहीं चला। फिर क्या था एक बार फिर मौत उसके सामने आकर खड़ी हो गई….

लेकिन पिछली बार की ही तरह इस बार भी ययाति काल के सामने अपनी अधूरी अच्छाओं का हवाला देने लगा… और उसने एक बार फिर 100 सालों की आयु को प्राप्त कर लिया। ये 100 साल भी ऐसे ही बीत गएं…

वहीं इस तरह करते करते मौत उसके सामने नौ बार आयीं, लेकिन उसे हर बार जीवनदान मिलता रहा। अंत तक जब 1000 सालों तक गंदा काम बिना रुके करने के बाद भी उसे तृप्ति नहीं मिली तब उसने पहली बार यमराज के सामने अपनी व्यथा को सुनाया की भोगों को मैंने नहीं बल्कि भोगों ने मुझे भोग लिया।

जिसके बाद राजा ययाति ने अपने पुत्र से ली हुई जवानी उसे लौटा दी और उसको यही सलाह दी की कभी भी भोग के रास्ते पर मत दौड़ना…

इसके बाद ययाति ने अपना सारा राजपाट भी पुरू को सौंप दिया और अपनी दोनों रानियों के साथ वन में चला गया। उसने भृगुतुंग नाम के पर्वत पर तपस्या की और वहीं पर अपने शरीर का त्याग किया।

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