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रावण के ससुर ने कैसे की थी पांडवों की मदद

by Divine Tales

दोस्तों वैसे तो पांडव सारे काम करने में सक्षम थे.. इसकी एक वजह ये भी थी कि उनकों श्रीकृष्ण का सहयोग प्राप्त था.. लेकिन क्या आप जानते है एक बार कुछ ऐसा हुआ था कि पांडवों को रावण के ससुर यानि की मयासुर की मदद लेनी पड़ी थी.. पर सोचने वाली बात है कि धर्म का साथ देने वाले पांडवों ने एक असुर से मदद क्यों ली..

ये बात उस समय की है जब धृष्टराष्ट्र ने पारिवारिक कलह को शांत करने के लिए पाडंवों को रहने के लिए खांडव वन दे दिया था… जिससे कौरवों और पांडवों के बीच शांति बनी रहे.. पांचों पांडव ने भी शांति से ये बात मान ली और खांडव वन में रहने चले गये… लेकिन तब वो वन रहने लायक नहीं था.. किसी जामने में वहां नगर हुआ करता था.. लेकिन जब पांडव वहां पहुंचे तो वो सिर्फ एक बीहड़ जंगल था… जहां जंगली पेड़ों के सिवा और कुछ नहीं था।

अब ऐसे में पांडवों के सामने ये चुनौती थी कि वो कैसे उस वन को रहने लायक बनायें… इस चुनौती को पार करने के लिए श्रीकृष्ण ने उनकी मदद की.. और कहा कि इस भूमि को एक नगर में बदलना होगा.. इसके लिए पहले जंगल को साफ करना होगा.. अर्जुन और श्रीकृष्ण ने अपने अस्त्र- शस्त्र से उस जंगल में आग लगा दी… थोड़ी ही देर में वो वन आग की लपटों से धधक उठा..  उसी वन में मयासुर नाम का एक दानव भी रहता था.. कहते है जब श्रीकृष्ण का चक्र मयासुर को मारने के लिए बढ़ा तो उसने अर्जुन के चरण पकड़ लिये.. अर्जुन के कहने पर माधव ने मयासुर को छोड़ दिया और उसकी जान बच गयी।

इसके बाद उस वन को नगर बनाने के लिए श्रीकृष्ण ने महान शिल्पकार विश्वकर्मा का आवाहन किया.. तब विश्वकर्मा जी ने उन्हें बताया कि प्रभु इस खांडव वन में मयासुर ने पहले भी एक नगर बसाया था.. लेकिन आज ये खंडह हो चुका है.. आप दुबारा नगर बनाने के लिए मयासुर कि ही मदद लीजिए… वो यहां के चप्पे-चप्पे को जानता है और वो एक कुशल शिल्पकार भी है।

श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जब मयासुर से इस बारे में बात की तो वो तुरंत मान गया… उसने उस खंडहर को पांडवों के लिए एक सुंदर नगरी में बदल दिया… जिसे इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना गया.. कहते है उस समय ये नगरी बिल्कुल इंद्र देव के स्वर्ग की तरह थी… इसी लिए इसका नाम इंद्रप्रस्थ पड़ा… इसकी सुंदरता के चर्चे इतने ज्यादा थे कि कौरवों को इस बात से जलन होने लगी थी.. क्यों कि ये नगरी मयासुर ने बनायी था इसलिए यहां कई ऐसी चीजें थी, जिसे देखकर कोई भी धोखा खा सकता है… खासकर पांडवों का महल वो तो इंद्रजाल जैसा बनाया गया था।

इतना ही नहीं मयासुर ने उन्हें दिव्य हथियार भी दिये.. जिनका इस्तेमाल पांडवों ने महाभारत युद्ध में किया था… सबसे पहले मयासुर ने एक दिव्य रथ दिया… जो बहुत तीव्र गति से चलता था और उसे कभी भी अचानक मोडा जा सकता था.. आपको बता दें वो रथ महाराजा सोम का था.. इसके बाद उन्होंने कौमुद गदा दी, जो बहुत ही प्रचंड थी.. कहते है वो गदा भीम के अलावा और कोई नहीं उठा सकता था.. आखिर में मयासुर ने अर्जुन को गांडीव धनुष और एक ऐसा तरकश दिया जिसके बाण कभी खतम नहीं होते… मयासुर ने बताया, अर्जुन ये धनुष बहुत ही खास है, इसे दैत्यराज वृषपर्वा ने महादेव की आराधना कर के उन से प्राप्त किया था।

अब आपको मयासुर से जुडी कुछ और रोचक बातें बताते हैं..

दोस्तों जिस तरह विश्‍वकर्मा देवताओं के वास्तुकार थे ठीक उसी तरह मयासुर असुरों के वास्तुकार थे… मयासुर को हर तरह की रचना करने का ज्ञान प्राप्त था.. मान्यता है कि उस काल की आधी दुनिया की चीजें मंदोदरी के पिता यानी की मयासुर ने ही बनाया था… कहते है वो इतना प्रभावी और चमत्कारी वास्तुकार था कि अपने निर्माण काम के लिए पत्थर तक को पिघला देता था.. इतना ही नहीं उसने इंद्र को भी मायावी विद्याओं का ज्ञान दिया था।

भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सूर्यसिद्धान्त’ की रचना भी मयासुर ने ही की थी… बता दें ऐस्ट्रोलॉजी से जुड़ी भविष्यवाणी करने के लिए ये सिद्धांत बहुत मददगार सिद्ध होता है।

आपको बता दें, मायासुर सात पतालों में से एक तलातल का राजा था.. मान्यता है सुतल लोक से नीचे तलातल आता है… और वहीं पर त्रिपुराधिपति दानवराज मयासुर रहता है।

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