दोस्तों, बद्रीनाथ धाम को लेकर एक ऐसी भविष्यवाणी की गई है जिसके बाद बद्रीनाथ के श्रद्धालू कभी भी उनके दर्शन नहीं कर पाएंगे….
ऐसा माना जाता है कि वो समय बहुत नजदीक है जब बद्रीनाथ धाम के रास्ते बंद हो जाएंगे… दरअसल… चमोली जिले के जोशिमठ में मंदिर में मौजूद नरसिंह भगवान की एक मूर्ति है जिसका एक हाथ कलयुग में बढ़ते पाप के साथ-साथ पतला होता जा रहा है… और आज के समय में उनके हाथ का वहीं हिस्सा सूई के गोलाई के बराबर हो गया है….
ऐसे में जब ये हाथ गिर जाएगा तब नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ का रास्ता पूरी तरह से बंद हो जाएगा। जिसके चलते भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे।
वहीं पुराणों की मानें तो आने वाले कुछ सालों में जब बद्रीनाथ धाम लुप्त हो जाएगा तब कई हजार सालों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नाम से नए तीर्थ का उद्गम होगा।
दोस्तों, बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की 3,133 मीटर की ऊंचाई पर मूर्ति स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था।
वहीं इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊंचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।
दोस्तों, 16 वीं सदी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को उठवा कर वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में ले जाकर उसकी स्थापना करवा दी और यह भी माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने आठवीं सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था । शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है । यहां भगवान विष्णु का विशाल प्रकृति की गोद में स्थित है । यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है गर्भ ग्रह, दर्शन मंडप और सभा मंडप । बद्रीनाथ जी के मंदिर में 15 मूर्ति स्थापित है । साथ ही साथ मंदिर के अंदर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा है । इस मंदिर को धरती का बैकुंठ और भी कहते हैं ।
पौराणिक कथा के अनुसार यह है स्थान शिव भूमि के रूप में व्यवस्थित था । भगवान विष्णु अपने ध्यान योग के लिए स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिव भूमि का स्थान बहुत भा गया । उन्होंने वर्तमान चरण पादुका स्थल पर गंगा और अलकनंदा के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे उनके रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती और शिव जी बालक के पास आए और उस बालक से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए । तो बालक ने ध्यान योग करने के लिए शिव भूमि का स्थान मांग लिया यही पवित्र स्थान आज बद्री विशाल के नाम से जाना जाता है ।
वहीं दोस्तों….. बद्रीनाथ के नाम के पीछे एक रोचक कथा है…. यह कहते हैं कि एक बार देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गईं थीं । तब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या करने लगे। जिसके बाद देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुंच गई जहां भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे उस समय उस स्थान पर बद्री का वन था। यहां भगवान विष्णु ने तपस्या की थी इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया और इस जगह का नाम बद्री नाथ पड़ा ।
बद्रीनाथ मंदिर भक्तों के लिए सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है | इस में बद्रीनाथ भगवान् की दिन दो बार आरती सुबह 04:30 बजे महाभिषेक और आरती व रात्री में 08:30 बजे रात्री आरती होती है| भगवान को प्रसाद के रूप में गरी का गोला, मिश्री, कच्चे चने के दाल और वन की तुलसी की माला अर्पित किया जाता है|
यहां बद्रीनाथ मंदिर से जुडी मान्यता है की इस मंदिर में दर्शन मात्र करने से ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा मिल जाता है | इसके साथ ही यहां ऊंची शिला पर एक ब्रह्म कपाल नाम की जगह स्थित है जहां पितरो को तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती है |
इसके साथ ही बद्रीनाथ मंदिर में पूजा करने वाले ब्राह्मण आदि गुरु शंकराचार्य जी के अनुनायी होते हैं जो रावल कहलाते हैं | रावल के लिए स्त्री का परामर्श करना भी पाप माना जाता है |
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