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श्रीकृष्ण ने क्यों कटवाया जिंदा बालक का मांस

by Divine Tales
श्री कृष्ण ने क्यों कटवाया जिन्दा बालक

श्रीकृष्ण ने क्यों कटवाया जिंदा बालक का मांस

श्री कृष्ण ने क्यों कटवाया जिन्दा बालक

ये बात उस समय की है जब महाभारत युद्ध में जीतने के बाद पांडव अश्वमेघ यज्ञ करा रहे थे। यज्ञ के अनुसार उन्होंने एक घोड़े को स्वतंत्र छोड़ दिया, जिसके बाद कई राज्यों से होता हुआ वो घोड़ा, जब कोसल राज्य पहुंचा, तो उसे वहां के राजा, राजा मोरध्वज ने रोक लिया।

अर्जुन को जब इस बात का पता चला तो वो गुस्से से लाल हो गया। गुस्से में तिलमिलाया अर्जुन, राजा मोरध्वज से युद्ध करने की बात कहने लगा। तभी यज्ञ में मौजूद कृष्ण ने अर्जुन का गुस्सा शांत कराते हुए उससे कहा अर्जुन, मोरध्वज मेरा बहुत बड़ा भक्त है, उसे युद्ध में हराना कोई आसान बात नहीं।

एक तरफ वो युधिष्ठिर की तरह धर्मपालक है, तो वहीं दूसरी ओर उसमें भीम के समान बल है। नकुल के समान उसकी सुंदरता पूरी धरती में प्रचलित है और तो और सहदेव की तरह उसमें सहनशीलता भी है। इतना ही नहीं तुम्हारी तरह उसे भी धनुष विद्या में हराया नहीं जा सकता।

कृष्ण से मोरध्वज की इतनी तारीफें सुनकर अर्जुन चौंक गए। थोड़ी देर तो वो चुप रहें लेकिन फिर उन्होंने कृष्ण से कहा, आप कह रहें है तो मैं मान ले रहा हूं, लेकिन मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि कोई मेरे भाई युधिष्ठिर के समान दानी और धर्मज्ञाता है इसलिए, मैं चाहता हूं कि मैं राजा मोरध्वज से खुद मिलूं।

अर्जुन की ये बातें सुनकर कृष्ण पहले तो मुस्कुराएं लेकिन फिर उन्होंने कहा, ठीक है मैं तुम्हें राजा मोरध्वज से खुद मिलवाउंगा, लेकिन इसके लिए मैं जैसा बोलूं तुम्हें वैसा ही करना होगा, कृष्ण की ये बातें अर्जुन ने तुरंत मान ली।

इसके बाद कृष्ण ने अपनी शक्तियों से अर्जुन को शेर और खुद को एक ब्राह्मण बना दिया।  फिर दोनों कौसल नरेश मोरध्वज से मिलने निकल लियें।

जैसे ही ब्राह्मण राजा के दरबार पहुंचे, राजा की खुशी की सीमा न रही। मोरध्वज तुरंत उस ब्राह्मण के स्वागत के लिए हाथ जोड़कर खड़े हो गए। इसके बाद ब्राह्मण के रुप में आए कृष्ण ने राजा से कहा,

राजन मेरा ये शेर बहुत दिनों से काफी भूखा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप जल्दी से जल्दी इसके लिए भोजन का इंतज़ाम कर दें। मोरध्वज ने कहा आपकी जैसी आज्ञा ब्राह्मण देव, मैं अभी इसके लिए भेड़- बकरी के मांस की व्यवस्था करता हूं।

इस बात पर ब्राहम्ण गुस्सा गए, उन्होंने मोरध्वज से कहा.. तुम क्या इसे कोई आम शेर समझ रहे हो, ये मेरा बेहद ही खास शेर है और ये किसी भेड़- बकरियों का मांस नहीं खाता। ये सिर्फ इंसना के दाहिने हिस्से का मांस ही खाता है इसलिए जितना जल्दी हो सके उसके लिए किसी इंसान के दाहिने हिस्से का मांस लेकर आओ।

ब्राह्मण की ये बातें सुनकर राजा हैरान- परेशान हो गए और सोच में डूब गए। कुछ समय बाद उन्होंने ब्राह्मण ने कहा, ब्राह्मण देव आपके शेर के लिए, मैं अपने शरीर के दाहिने हिस्से का भाग देने के लिए तैयार हूं।

मैं मांस काटकर देता जाउंगा और आपका शेर खाता जायेगा। कृष्ण को तो यहां मोरध्वज की परीक्षा लेनी थी, इसलिए उन्होंने चतुराई दिखाते हुए कहा.. राजन, मेरे शेर को आपका नहीं बल्कि आपके बेटे का मांस चाहिए। दरअसल, मेरे शेर को मुलायम मांस चाहिए, जिसे वो आसानी से खा सकें।

ब्राह्मण की ये बात सुनकर राजा- रानी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अपनी ममता से मजबूर रानी, बिलख- बिलख कर रोने लगी लेकिन, तभी वहां उनका बेटा राजकुमार ताम्रध्वज आया और उसने कहा.. पिता जी आप परेशान न हो, अगर इस शेर की भूख मेरे मांस से मिट जायेगी, तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

लेकिन तभी ब्राह्णण ने राजा से दो शर्तें और रख दी, पहली ये की बालक के आंखों में आंसू नहीं आने चाहिए और दूसरी ये कि राजा- रानी दोनों मिलकर आरी से अपने पुत्र का मांस काटकर देंगे।

मोरध्वज और उनकी पत्नी पर तो मानों जैसे दुख के बादल ही फट गये हों। लेकिन अपने मन को मजबूत करके दोनों इस बात के लिए राजी हो गए। उसके बाद राजा ने अपने सेवकों को तुरंत आरी लाने का आदेश दिया। आरी आते ही राजा और रानी ने अपने पुत्र ताम्रध्वज को आरी से बीचो-बीच से काटना शुरु कर दिया।

तभी ब्राह्मण ने देखा की राजकुमार की बाएं आंख से आंसू बह रहे हैं, इससे ब्राहमण नाराज़ हो गए और कहने लगे, मेरा शेर रोते हुए राजकुमार का मांस नहीं खा सकता। ये तो मेरी कही बात का अपमान करना है। ये सुनकर ताम्रध्वज ने कहा, हे ब्राह्मण देव मैं नहीं रो रहा हूँ, बल्कि ये तो मेरा बायां अंग रो रहा है, वो कितना बड़ा अभागा है जो आपके काम नहीं आ सका।

राजकुमार की ये बातें सुनकर श्री कृष्ण और अर्जुन अपने असली रूप में आ गए। इसके बाद कृष्ण ने तुरंत राजकुमार के अंगों को पहले की तरह बिल्कुल स्वस्थ कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने राजा- रानी को भी अपना ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिया। जिसके बाद राजा ने अर्जुन का अश्वमेघ यज्ञ का घोडा, उन्हें वापस लौटा दिया।

आपको बता दें राजा मोरध्वज कोसल राज्य के नरेश थे, जिसकी राजधानी आरंग थी। माना जाता है कि इसका नाम आरंग इसीलिए पड़ा, क्यों कि राजा ने अपने बेटे को आरी से काटा था।

यानि की महाभारत काल में कर्ण के साथ राजा मोरध्वज भी महादानी थे।

आपको ये जानकारी कैसी लगी हमें जरुर बतायें। अगर, आप इसका वीडियो देखने चाहते है, तो दिये गये लिंक पर क्लिक कर के देख सकते हैं।

श्री कृष्ण ने क्यों कटवाया जिन्दा बालक। राजा मोरध्वज की कथा। | श्री कृष्ण ने क्यों कटवाया जिन्दा बालक। राजा मोरध्वज की कथा। | By The Divine Tales | Facebook

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