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हिन्दू धर्म के सबसे शक्तिशाली नाग – MOST POWERFUL SNAKES IN HINDU MYTHOLOGY

by Tulsi Pandey
हिन्दू धर्म के नाग

नागों का अस्तित्व अनंत काल से है इसलिए हिन्दू धर्म में नागों की मान्यता है। आदिकाल की प्रमुख जातियों में नाग जाति को आलौकिक कहा गया है। आज की इस पोस्ट में आपको हिन्दू धर्म के सबसे शक्तिशाली नागों से अवगत कराने जा रहे है।

01. शेषनाग

Shesh Naag

हिन्दू धर्म में शेषनाग को सबसे शक्तिशाली नागों में से एक माना गया है। शेषनाग से जिसे नागों का राजा कहा जाता है। शेषनाग को अनेक स्थानों पर पुरुष रूप में भी चित्रित किया जाता है। वो अपनी इच्छानुसार पुरुष और नाग का रूप धारण करने की क्षमता रखते थे। शेषनाग को भगवान् विष्णु का सेवक बताया गया है। ब्रह्मा के ६ मानस पुत्रों में एक मरीचि ने कश्यप नाम का एक प्रजापति पुत्र उत्पन्न किया। कश्यप ने प्रजापति दक्ष की सत्रह पुत्रियों से विवाह किया।

शेषनाग के माता-पिता

ऋषि कश्यप की इन पत्नियों में दो के नाम थे कद्रू व् विनता। कद्रू सर्पों की माँ थी और विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू और विनता ने सफ़ेद रंग का घोडा देखा। विनता ने कहा यह घोडा पूरी तरह सफ़ेद है जबकि कद्रू ने कहा कि इसकी पूँछ काली है और अतिरिक्त शरीर सफ़ेद। अपनी बात को सही सिद्ध करने कि लिए कद्रू ने अपने नाग पुत्रों को उस घोड़े की पूँछ से जाकर लिपटने के लिए कहा। जिससे घोड़े की पूँछ काली दिखे। कुछ नागों ने ऐसा करने से मना कर दिया तब कद्रू ने इन नागों को यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया था। कद्रू से एक हज़ार शक्तिशाली नाग उत्पन्न हुए थे इसलिए कद्रू को नागमाता के नाम से जाना जाता है। इन हज़ार नागों में सर्वशक्तिशाली शेषनाग थे। जिन्हे अनंतनाग भी कहा जाता है।

शेषनाग के फण पर पृथ्वी  

शेषनाग ने सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने सिर पर धारण कर लिया था। एक सिद्धांत के अनुसार इनका मूलस्थान कश्मीर था।शेषनाग अपनी माँ और सौतेले भाइयों के छली स्वभाव के कारण इस संसार से विरक्त होकर ब्रह्मा की तपस्या में लीन हो गए थे। ब्रह्मा ने तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि उनकी बुद्धि सदैव धार्मिक कार्यों में लगी रहे।  साथ ही ब्रह्मा ने शेषनाग को पृथ्वी को अपने फन पर धारण करने का आदेश दिया। जैसे ही ब्रह्मा के आदेश का पालन करते हुए शेषनाग पृथ्वी के नीचे गए। सर्पों ने उनके भाई वासुकि का राजतिलक कर दिया.     

02.वासुकि नाग

Vasuki

शक्तिशाली नागों की श्रेणी में अगला नाम है नागराज वासुकि। जो महादेव शिव के सेवक थे । वासुकि को महादेव शिव आभूषण के रूप में अपने कंठ में धारण करते है । वासुकि के शीश पर अनमोल रत्न नागमणि सुसज्जित है । उनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा था। समुद्र मंथन को परिणाम देने के लिए मंदराचल पर्वत ने मथनी और नागराज वासुकि ने रस्सी की भूमिका निभाई थी। वासुकि को ज्ञात था कि भविष्य में नागकुल का विनाश किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने अपनी बहिन मनसा का विवाह जरत्कारु के साथ किया । क्यूंकि इन दोनों का पुत्र ही नागवंश की रक्षा कर सकता था ।

नाग कुल की रक्षा

आगे जाकर जब महाराज परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई । तब परीक्षित पुत्र जनमेजय ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे साँपों की आहुति दी जा रही थी। यदि यज्ञ संपन्न होता तो सभी नाग समाप्त हो जाते । किन्तु जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने इस यज्ञ से सर्पों की रक्षा कर नागकुल को नष्ट होने से बचाया । आपको बता दें कि मनसा को नागों की देवी कहा जाता है।उत्तराखंड का प्रसिद्द मनसा देवी मंदिर में वासुकि नाग की बहिन मनसा की ही पूजा की जाती है।

03.तक्षक नाग

Takshak

हिन्दू धर्म के प्रमुख नागों में तक्षक का भी नाम सम्मिलित है। कद्रू का यह पुत्र भी पाताल में निवास करता है। तक्षक नाग ने ब्राह्मण का रूप धारण कर भगवान विष्णु के ध्यान में लीन राजा परीक्षित को डस लिया । जिस कारण परीक्षित की मृत्यु हुई । तब परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नागों को नष्ट करने के लिए एक यज्ञ किया । यह देख तक्षक नाग ने इंद्र की शरण लेकर स्वयं की रक्षा की । परन्तु मन्त्रों के प्रभाव से इंद्रलोक से इंद्र एवं तक्षक दोनों को ही आना पड़ा । तब गुरु बृहस्पति के समझाने पर जनमेजय ने इस यज्ञ को समाप्त किया ।

04.कर्कोटक नाग

Karkotak naag

इन्हे भी शक्तिशाली नागों में से एक माना जाता है। कर्कोटक शिव के गणों में से एक हैं। कहा जाता है कि नारद मुनि के श्राप के कारण कर्कोटक अग्नि से घिर गया था । तब उसकी रक्षा राजा नल ने की । परन्तु कर्कोटक ने राजा नल को ही डस लिया । जिससे नल का शरीर काला पड़ गया । राजा नल को कर्कोटक ने एक श्राप के कारण काटा था । जिसके बाद राजा नल को वरदान देकर कर्कोटक ध्यान में लीन हो गए । शिव की आराधना के कारण कर्कोटक की जनमेजय द्वारा कराये गए नाग यज्ञ से रक्षा हुई। जिसके बाद उन्होंने शिव जी की तपस्या की। शिव जी ने तपस्या से प्रसन्न होकर कहा कि जो नाग धर्म का आचरण करेंगे उनका विनाश असंभव है । इसके पश्चात् कर्कोटक उस शिवलिंग में समा गए । तब से यह लिंग कर्कोटेश्वर के नाम से प्रसिद्द है ।

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