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महाभारत युद्ध में छल से मारे गए पांच योद्धा

by Tulsi Pandey
महाभारत युद्ध

हमारे धर्मग्रंथों में महाभारत के युद्ध को धर्म और अधर्म के बिच लड़ा गया युद्ध बताया गया है। इस युद्ध में करोड़ों योद्धा ने अपनी जान गवाई। कुरुक्षेत्र में लड़े इस युद्ध की भयाहवता का पता इस बात से भी चलता है की महाभारत युद्ध के कारण ही आज भी कुरुक्षेत्र की मिटटी का रंग लाल है। इस युद्ध में भाग लेनेवाले कई ऐसे महारथी थे जिन्हे मारना आसान नहीं था परन्तु फिर भी वो मारे गए। इस पोस्ट में मैं महाभारत की ऐसी गाथा के बारे में बताऊंगा की किस प्रकार पांडवों ने युद्ध जीतने के लिए छल-कपट का सहारा लेकर ऐसे ऐसे योद्धाओं का वध किया जिन्हे मारना किसी के लिए भी असंभव था।

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भीष्म पितामह

छल-कपट से मारे गए तोद्धाओं में सबसे पहला नाम आता है भीष्म पितामह का। कौरवों और पांडवों के पितामह भीष्म महाभारत के युद्ध में भाग लेने वाले सबसे पराक्रमी और बुजुर्ग योद्धा थे। ऐसा कहा जाता है अठारह दिनों तक चले इस युद्ध में भीष्म दस दिनों तक पाण्डवों की विजय में बाधक बने रहे। महाभारत युद्ध भीष्म को पराजित किये बिना पाण्डवों के लिए जीतना असंभव होता जा रहा था ऐसी स्थिति में श्री कृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने श्रीखंडी को ढाल बनाकर युद्ध के दसवें दिन भीष्म को बाणो से चलनी कर दिया। उसके बाद भीष्म ने बाणो की शय्या पर लेटे-लेटे महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद अपने प्राण त्याग दिए।

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द्रोणाचार्य

कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य को महाभारत युद्ध में हराना असंभव था। ऐसा माना गया है की द्रोणाचार्य को केवल उनका शोक ही मार सकता था। भीष्म के बाणो की शय्या पर लेटने के बाद गुरु द्रोणाचार्य को कौरवों की ओर से प्रधान सेनापति बनाया गया। सेनापति बनाने के बाद द्रोणाचार्य पांडवों की जीत में सबसे बड़े बाधक बनाते जा रहे थे। ऐसे में पाण्डवों एक बार फिर श्री कृष्ण की सलाह पर छल का सहारा लिया। श्री कृष्ण ने भीमसेन से कहा की वह अश्व्थामा नाम के हाथी को मारकर जोर-जोर से चिल्लाये की मैंने अश्व्थामा को मार दिया है। द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्व्थामा ही था। ऐसा सुनते ही गुरु ड्रोन अस्त्र-शस्त्र त्यागकर जमीन पर बैठ गए। इसी बीच दृष्टद्युम ने तलवार से द्रोणचार्य के सर को धड़ से अलग कर दिया।

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जयद्रथ

अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को मरनेवालों में दुर्योधन के बहनोई जयद्रथ का नाम भी शामिल था। जयद्रथ को अपने पुत्र का हत्यारा मानकर अर्जुन ने प्रतिज्ञ ली की अगले दिन सूर्यास्त तक जयद्रथ को नहीं मार पाया तो आत्मदाह कर लूँगा। शाम होने वाली थी और अर्जुन के लिए जयद्रथ को मार पाना असंभव दिख रहा था ऐसे में श्री कृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को ढंक दिया जिससे चारों ओर अँधेरा छा गया। ये देखा जयद्रथ समेत कौरवों ने समझा की शाम हो गयी और ख़ुशी के मारे जयद्रथ अर्जुन के सामने आ गया। उसके बाद श्री कृष्ण की माया से आसमान में फिर से सूर्य की किरणे दिखने लगी। और कृष्ण का इशारा मिलते ही अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया। 

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अंगराज कर्ण

अंगराज कर्ण को युद्ध में सीधे पराजित करना अर्जुन के वश की बात नहीं थी। ऐसे जब युद्ध करते समय कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया और कर्ण अपने रथ का पहिया निकालने लगा तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा की यही वह मौका है जब तुम अंगराज कर्ण का वध कर सकते हो। श्री कृष्ण ने कहा की मुझे पता है की कर्ण ऐसा योद्धा है जिसे केवल छल से ही पराजित किया जा सकता है। ऐसे में मौका देखकर अर्जुन ने अंगराज कर्ण का वध कर दिया।

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दुर्योधन

महाभारत युद्ध के अंतिम योद्धा दुर्योधन का वध भी पाण्डवों ने छल पूर्वक ही किया था।महाभारत युद्ध के अंतिम दिन भीम और दुर्योधन में गदा युद्ध हुआ। इस युद्ध में गदा का प्रहार कमर से ऊपर करने का नियम था लेकिन भीम ने श्री कृष्ण के संकेत पर दुर्योधन के कमर के निचे वार करना शुरू कर दिया। और इस तरह पांडवों ने दुर्योधन का वध भी छलपूर्वक किया। 

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