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सत्यवती और ऋषि पराशर की प्रेम कथा

by Tulsi Pandey
सत्यवती और ऋषि पराशर की प्रेम कथा

कौरवों और पांडवों के बिच हुए युद्ध के लिए -अक्सर लोग दुर्योधन और कौरवों के मामा शकुनि को जिम्मेदार मानते है लेकिन ऐसा नहीं है।अगर आप महाभारत की कथा पर गौर करेंगे तो आप पाएंगे की इस युद्ध का बीज बहुत पहले ही बो दिया गया था। अगर सत्यवती और ऋषि पराशर के बिच प्रेम न हुआ होता तो शायद ही महाभारत होता।

सत्यवती और ऋषि पराशर की प्रेम कथा


ऋषि पराशर और सत्यवती का मिलन

कथा के अनुसार द्वापर युग में पराशर नाम के एक ऋषि हुआ करते थे। वो बहुत विद्वान और योग सिद्धि संपन्न प्रसिद्ध ऋषि थे। कहा जाता है की ऋषि पराशर एक दिन यमुना पार करने के लिए नाव पर सवार हुए। भाग्यवश उस दिन वह नाव मछुआरे धीवर की जगह उसकी पुत्री सत्यवती चला रही थी। निषाद पुत्री सत्यवती देखने में बहुत ही सुंदर थी। ऋषि पराशर उसके रूप और यौवन को देखकर उसपर मोहित हो गए।

उन्होंने निषाद कन्या सत्यवती से प्यार करने की इच्छा जताई। लेकिन सत्यवती ने मना कर दिया और कहा कि यह तो धर्म के विरुद्ध है। विवाह से पहले में ऐसा अनैतिक काम नहीं करुँगी। पराशर ऋषि नहीं माने और उससे बार बार प्यार करने का निवेदन करने लगे। अंत में सत्यवती ऋषि पराशर से सबंध बनाने को तैयार हुई।सत्यवती ने ऋषि के सामने 3 शर्तें रखीं।

क्या थी तीन शर्तें

पहली यह कि उन्हें ऐसा करते हुए कोई नहीं देखे। ऐसे में तुरंत ही ऋषि पाराशर ने एक कृत्रिम द्वीप बना दिया जहाँ उन दोनों के सिवा तीसरा कोई नहीं था।

दूसरी शर्त यह कि उनकी कौमार्यता किसी भी हालत में भंग नहीं होनी चाहिए। ऐसे में ऋषि ने आश्वासन दिया कि संतान के जन्म के बाद उसकी कौमार्यता पहले जैसी ही हो जाएगी।

तीसरी शर्त यह कि वह चाहती है कि उसकी मछली जैसी दुर्गंध मनमोहक सुगंध में बदल जाए। तब पराशर ऋषि ने उसके चारों ओर एक सुगंध का वातावरण निर्मित कर दिया। जिसे कि कई मील दूर से भी महसूस किया जा सकता था। सभी शर्तों को पूरा करने के बाद सत्यवती और ऋषि पराशर ने नाव में ही सम्बन्ध बनाये।

कौन था सत्यवती का पुत्र

कुछ महीने बाद सत्यवती को एक पुत्र हुआ। जिसका नाम कृष्णद्वैपायन रखा गया । यही पुत्र आगे चलकर महर्षि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यही निषाद पुत्री आगे चलकर हस्तिनापुर नरेश शांतनु की रानी बनी। सत्यवती के कारण ही गंगा पुत्र देवव्रत को आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी। और देवव्रत का नाम भीष्म हो गया।

हस्तिनापुर की कथा
बाद में सत्यवती के राजा शांतनु से चित्रांगद और विचित्रवीर्य नामक दो पुत्र हुये। चित्रांगद के बड़े होने पर उन्हें हस्तिनापुर का राजा बनाया गया। कुछ ही समय बाद गन्धर्वों से युद्ध करते हुये चित्रांगद मारे गए। इस पर भीष्म ने उनके अनुज विचित्रवीर्य को राज्य सौंप दिया।विचित्रवीर्य अपनी दोनों रानियों के साथ भोग विलास में रत हो गये।

किन्तु दोनों ही रानियों से उनकी कोई सन्तान नहीं हुई।और वे पीलिया रोग से पीड़ित होने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गये। तब माता सत्यवती ने अपने पहले पुत्र वेदव्यास को बुलाया जिससे धृतराष्ट्र,पांडु और विदुर का जन्म हुआ।

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