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नवरात्रि पहला दिन -माता शैलपुत्री की पूजा विधि

by Tulsi Pandey
नवरात्रि कथाएं

भारत के अनेक राज्यों में नवरात्रि के प्रत्येक दिन पुरे विधि विधान के साथ पूजा की जाती है. कलश स्थापना से लेकर, दुर्गा सप्तशती का पाठ, हवन, भोग, आरती आदि वातावरण को बहुत खुशनुमा बना देते हैं. दुर्गा माँ के इन नौ रूपों की कथा, पूजा विधि, मन्त्र आदि के विषय में हम विस्तार से बताएँगे. तो चलिए जानते हैं नवरात्रि पहला दिन -माता शैलपुत्री की कथा और पूजा विधि के बारे में .

पौराणिक कथा

नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है. शैलपुत्री देवी सती का रूप हैं. सती प्रजापति दक्ष की कन्या थीं. उनका विवाह महादेव शिव के साथ हुआ. दक्ष ने सती का शिव के साथ विवाह अपने पिता ब्रह्मा के कहने पर किया था परन्तु दक्ष शिव जी की जीवन शैली के कारण उन्हें पसंद नहीं करते थे. एकबार दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया. जिसमे शिव जी को आमंत्रित नहीं किया. जब सती को ज्ञात हुआ की उनके पिता ने एक ऐसे यज्ञ का आयोजन किया है जिसमे सभी देवी-देवता आमंत्रित हैं तो उन्होंने भी शिव जी के सामने पिता के यहाँ जाने की इच्छा व्यक्त की. परन्तु शिव जी ने कहा कि एक विवाहिता को उसके पिता के यहाँ बिना निमंत्रण के नहीं जाना चाहिए. सती फिर भी जाने का हठ करती रहीं. सती की अपने घर जाकर सबसे मिलने की व्यग्रता देखकर शिव जी ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी.

माता सती की कथा

जब सती पिता के घर पहुंची तो माँ के अतिरिक्त किसी ने भी उन्हें स्नेह और आदर नहीं दिया. यहाँ तक कि यज्ञ में शिव जी का भाग में नहीं निकाला गया. जब सती ने पिता दक्ष से इसका कारन पूछा तो दक्ष ने उत्तर दिया कि शिव वाघाम्बर धारण करता है, मुण्डियों की माला पहनता है, वो देवताओं के साथ बैठने योग्य नहीं है. पति के लिए ऐसे अपमानजनक शब्द सुनकर सती को बहुत दुःख हुआ और उन्हें भयंकर क्रोध आया. उन्हें समझ आ गया था कि शिव जी की बात न मानकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की है. भयंकर क्रोधाग्नि में सती ने स्वयं को उसी क्षण समाप्त कर दिया.

माता शैलपुत्री का जन्म

इस भयावह घटना को सुनकर शिव जी ने अपने गणों को वहां भेजा और यज्ञ को पूर्णतया विध्वंस करा दिया. शिव जी क्रोध में आकर तांडव करने लगे और सती के शरीर को लेकर सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इस दृश्य को देख भयभीत हो गया. तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर के टुकड़े कर दिए. ये टुकड़े जिन स्थानों पर गिरे वे स्थान ही आज शक्तिपीठ कहलाते हैं.माता सती ने अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में लिया इसलिए ही उनका नाम शैलपुत्री पड़ा. उन्हें पार्वती और हेमवती भी कहा जाता है.

शैलपुत्री की पूजा विधि

नवरात्रि का शुभारम्भ कलश स्थापना के साथ किया जाता है. यह कलश नौ दिन तक स्थापित रहता है. सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी को साफ़ करके इस पर लाल रंग का कपडा बिछाएं. इस चौकी पर माँ दुर्गा का चित्र रखें. अब किसी मिटटी के पात्र अथवा गमले में मिटटी डालकर जौ बो दें. इस पात्र में थोड़ा पानी डाल दें. अब एक तांबे का कलश लेकर इसपर कलावा या मौली बाँध दें और इस पर तिलक लगाएं. इस कलश में गंगाजल भर लें. इस जल में कुछ चावल के दाने, सुपारी, और दूर्वा घास दाल दें. इस कलश के किनारों पर पांच आम के पत्ते रखें और कलश को ढक दें. अब एक नारियल को एक साफ़ लाल रंग के कपडे में लपेट दें और इसे भी मौली से बाँध दें. नारियल को कलश पर रख दें. अब लकड़ी की चौकी पर माँ के चित्र के बराबर जौ वाला पात्र रखें और उस पर कलश स्थापित कर दें. इस कलश को नौ दिन तक ऐसे ही रहने दें और जिस मिट्टी के पात्र या गमले में आपने जौ बोया में उसे प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा पानी देते रहे.

यदि आपके लिए संभव है तो नवरात्रि के नौ दिन माँ के सामने अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करें. इसके पश्चात एक छोटे से हवनकुंड में एक छोटे कंडे के टुकड़े को जलाकर रखें. इसमें कपूर डाल दें. दो लौंग लेकर घी में डुबोकर और सुपारी कंडे की अग्यारी में अर्पित करें. साथ ही रोली और चावल से तिलक करें. साथ ही पूजा में फल और मिठाई का भोग लगाएं. कुछ लोग प्रथम दिन से दुर्गा सप्तशती के अध्यायों का पाठ करते हैं. यदि आप भी इस प्रथा का अनुसरण करते हैं तो इसे अवश्य करें. प्रतिदिन माँ दुर्गा कवच का पाठ अवश्य करें. ऐसा करने से माँ का आशीर्वाद सदैव आप पर रहेगा.

इसके पश्चात व्रत का संकल्प लें.

तत्पश्चात शैलपुत्री के मन्त्र का एक माला जप करें. माला में मोतियों की संख्या १०८ होनी चाहिए. माँ शैलपुत्री का मन्त्र इस प्रकार है:

ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

इसी मात्र का 108 बार जप करें.

माँ शैलपुत्री आयु, सौभाग्य और प्रकृति की देवी हैं. इसलिए माँ से प्रार्थना करें कि आपके घर में सौभाग्य बना रहे और सभी को लम्बी आयु और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति हो. अब आरती करके क्षमा याचना करते हुए पूजा का समापन करें. संध्या के समय में भी आरती करें. 

और इसके समाप्त होती है नवरात्रि के प्रथम दिन की पूजा विधि. हमारी मनोकामना है माँ शैलपुत्री आपके जीवन में समृद्धि लेकर आएं.

जय माँ शैलपुत्री

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